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मैं अपना दुःख लिए कैसे जीऊँ?

मैं अपना दुःख लिए कैसे जीऊँ?

अपने पिता की मौत के बारे में याद करते हुए माइक कहता है, “मैं पूरी कोशिश कर रहा था कि अपनी भावनाओं पर काबू रखूँ वरना लोग क्या कहेंगे।” माइक सोचता था कि दुःख को दबा देना ही मर्दानगी है। लेकिन बाद में उसे एहसास हुआ कि उसका सोचना कितना गलत था। इसलिए जब उसके दोस्त के

दादाजी की मौत हो गई तो माइक जानता था कि उसे अपने दोस्त को कैसे तसल्ली देनी है। वह कहता है: “अगर यह घटना कुछ साल पहले हुई होती तो शायद मैं अपने दोस्त का कंधा थपथपाकर कहता, ‘मर्द रोया नहीं करते।’ लेकिन इस बार मैंने ऐसा नहीं किया। मैंने उसकी बाँह पर हाथ रखकर उससे कहा: ‘तुम अपने दिल का गुबार जैसे चाहे वैसे निकाल सकते हो, इससे तुम्हें अपना दुःख बरदाश्‍त करने में मदद मिलेगी। अगर तुम अकेले रहना चाहते हो तो मैं चला जाता हूँ, या अगर तुम चाहते हो कि मैं यहाँ तुम्हारे पास रहूँ तो मैं तुम्हारे पास रहूँगा। लेकिन तुम दिल से यह डर निकाल दो कि अगर तुम अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करोगे तो लोग क्या कहेंगे।”

मैरीएन भी अपने पति की मौत के बाद लोगों की वजह से अपने दुःख को अंदर-ही-अंदर दबाने की पूरी-पूरी कोशिश कर रही थी। वह याद करते हुए कहती है: “मैं दूसरों के लिए अच्छी मिसाल कायम करने के बारे में इतनी फिक्रमंद थी कि मैंने एक आँसू तक निकलने नहीं दिया। लेकिन बाद में मुझे एहसास हुआ कि दूसरों के सामने हिम्मत की मिसाल बनने से खुद मुझे कोई मदद नहीं मिल रही है। मैंने अपनी हालत के बारे में बहुत सोचा और खुद इस नतीजे पर पहुँची, ‘अगर तुम्हे रोना आ रहा है, तो जी भर के रोओ। पत्थर जैसा कलेजा रखनेवाली मत बनो। अपने मन की भड़ास निकाल दो ताकि ये भावनाएँ तुम्हारे शरीर से निकलकर बाहर चली जाएँ।’”

इसलिए माइक और मैरीएन दानों की यही राय है: अपना दुःख खुलकर ज़ाहिर कीजिए!  उनकी यह बात सोलह आने सच है। क्यों? क्योंकि मन का बोझ हलका करने के लिए दुःख को बाहर निकालना बेहद ज़रूरी है। अपनी भावनाओं को खुलकर ज़ाहिर करने से आपको बहुत हलका महसूस होगा। सही-सही समझ के साथ अगर हम दुःख ज़ाहिर करने की कुदरती ख्वाहिश का इस्तेमाल करें तो इससे हमें सही भावनाएँ रखने में मदद मिलेगी।

यह सच है कि सभी के शोक प्रकट करने का तरीका एक-सा नहीं होता। एक व्यक्‍ति का दुःख कितना गहरा है, यह कुछ बातों पर निर्भर करता है जैसे क्या उसके अज़ीज़ की मौत अचानक हुई या लंबी बीमारी के बाद। लेकिन एक बात तो तय है: अपनी भावनाओं को मन-ही-मन दबाकर रखने से आपकी सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है, साथ ही यह भावात्मक तौर पर भी नुकसानदेह है। इसलिए अपना दुःख ज़ाहिर करना ही सबसे फायदेमंद है। लेकिन दुःख कैसे ज़ाहिर करें? इस बारे में बाइबल कुछ कारगर सलाह देती है।

दुःख को बाहर निकालना—कैसे?

बात करने  से दुःख हलका किया जा सकता है। जब प्राचीनकाल के कुलपिता, अय्यूब के दसों बच्चों की मौत हो गई और उस पर कई दूसरी विपत्तियाँ भी आईं, तो उसने कहा: “मैं अपने जीवन से ऊब गया हूं, मैं जी भर कर अपना दुखड़ा रोऊंगा [इब्रानी, “खोलूँगा”]; मैं अपने मन की कड़ुवाहट में बोलूंगा।” (अय्यूब 1:2, 18, 19; 10:1, NHT) अय्यूब अपने आप को रोक नहीं पा रहा था। उसे अपना दुःख ज़ाहिर करने, अपना दुखड़ा “रोने” की ज़रूरत थी। उसी तरह अँग्रेज़ी नाटककार, शेकस्पियर ने अपनी कहानी, मैकबेथ  में लिखा: “अपनी पीड़ा को शब्द दीजिए; जो इंसान अपना दुःख शब्दों में ज़ाहिर नहीं करता, दुःख उसका सीना छलनी कर देता है।”

इसलिए अपनी भावनाएँ किसी ‘सच्चे मित्र’ को बताइए जो आपसे सच्ची हमदर्दी रखता हो और जो इत्मीनान से आपकी बात सुने। इससे आपको काफी हद तक राहत महसूस होगी। (नीतिवचन 17:17, नयी हिन्दी बाइबिल ) आप पर क्या गुज़र रही है और आप कैसा महसूस कर रहे हैं, उसे शब्दों में बयान करने से आप अपनी भावनाओं को अच्छी तरह समझ पाएँगे और उनसे उबरने में आपको आसानी होगी। और अगर सुननेवाला ऐसा व्यक्‍ति है जो ऐसे ही सदमे से गुज़रने में कामयाब हुआ है, तो अपने दुःख पर काबू पाने में आप उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं। एक माँ ने बताया कि जब उसके बच्चे की मौत हुई तो उसे वैसा ही दुःख झेल चुकी एक और माँ से बात करके बड़ी राहत क्यों मिली: “जब मैंने जाना कि उसने भी मेरी तरह दुःख सहा है और वह अपने विचारों और भावनाओं पर काबू पा सकी है और अब किसी तरह पहले जैसी ज़िंदगी जी रही है, तो मुझे बहुत हिम्मत मिली।”

बाइबल के उदाहरणों से मालूम पड़ता है कि अपनी भावनाओं को लिखने से आपको अपना दुःख ज़ाहिर करने में मदद मिलेगी

अगर आपको किसी और के सामने अपना दुखड़ा रोना अच्छा नहीं लगता है, तब आप क्या कर सकते हैं? गौर कीजिए कि दाऊद ने क्या किया था। जब शाऊल और योनातान की मृत्यु हो गई तो दाऊद ने उनको खोने के गम में एक दर्द-भरा गीत लिखा जिसमें उसने अपने मन की गहरी वेदना को खुलकर ज़ाहिर किया। बाद में उसके इस दर्द-भरे गीत को बाइबल की दूसरा शमूएल नाम किताब में लिखा गया। (2 शमूएल 1:17-27; 2 इतिहास 35:25) उसी तरह आज कुछ लोग जब अपनी भावनाओं को कागज़ के पन्‍नों पर उतार लेते हैं तो उन्हें बड़ा सुकून मिलता है। एक विधवा ने बताया कि वह अपनी भावनाओं को लिखकर रख लेती और फिर कुछ दिनों के बाद उन्हें पढ़ती थी। ऐसा करने से वह काफी हद तक अपने मन का बोझ हलका कर सकी।

अगर आप किसी से बात करके या लिखकर अपने मन की बात ज़ाहिर करेंगे, तो इससे आपको अपना दुःख हलका करने में मदद मिलेगी। इससे गलतफहमियाँ भी दूर की जा सकती हैं। एक दुःखी माँ बताती है: “मेरे पति और मैंने बहुत सुना था कि एक बच्चे की मौत के बाद कई पति-पत्नियों के बीच तलाक हो गया है और हम नहीं चाहते थे कि हमारे साथ भी ऐसा हो। इसलिए जब कभी हमें गुस्सा आता और मुझे यह लगता कि यह मेरे पति की वजह से हुआ या उन्हें लगता कि मेरी वजह से यह हुआ, तब हम बैठकर ठंडे दिमाग से आपस में खुलकर बातचीत करते थे। मैं सोचती हूँ कि ऐसा करने से हम एक-दूसरे के और करीब आए हैं और हमारा रिश्‍ता और भी मज़बूत हो गया।” इस तरह अगर आप अपनी भावनाएँ दूसरों को बताएँगे तो आप यह जान सकेंगे कि आपकी तरह दूसरा व्यक्‍ति भी दुःखी है, फर्क सिर्फ इतना है कि उसके शोक मनाने का और अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करने का तरीका अलग है।

एक और तरीका जिससे आपके लिए दुःख सहना आसान हो जाएगा, वह है रोना।  बाइबल कहती है कि “रोने का समय” होता है। (सभोपदेशक 3:1, 4) जब हमारे किसी अपने की मौत हो जाती है तो वह बेशक रोने का समय होता है। इसलिए देखा गया है कि दिल के ज़ख्म भरने के लिए दुःख के आँसू बहाना ज़रूरी है।

एक जवान स्त्री बताती है कि जब उसकी माँ गुज़र गई तो किस तरह उसकी एक पक्की सहेली ने उसे यह दुःख सहने में मदद दी थी। वह कहती है: “मेरी सहेली हमेशा मेरे साथ थी। वह भी मेरे साथ रोती थी। वह मुझसे बातें करती थी। मैं उसके सामने रो-रोकर अपना सारा दुःख बयान कर सकी, और यह मेरे लिए बहुत ज़रूरी भी था। उसके सामने एक बार को भी मुझे यह नहीं लगा कि मुझे रोता देख वह क्या सोचेगी।” (रोमियों 12:15 देखिए।) उसी तरह आप भी शर्मिंदा महसूस मत कीजिए। जैसा हम पहले ही देख चुके हैं, बाइबल में ऐसे कई विश्‍वासी स्त्री-पुरुषों की और यीशु मसीह की मिसाल दी गई है जिन्होंने सब के सामने आँसू बहाए थे और ऐसा करने में उन्होंने संकोच महसूस नहीं किया था।—उत्पत्ति 50:3; 2 शमूएल 1:11, 12; यूहन्‍ना 11:33, 35.

चाहे कोई भी संस्कृति क्यों ना हो दुःखी लोगों का जब ढाढ़स बँधाया जाता है तो इसकी कदर की जाती है

आप शायद पाएँ कि शुरू में कुछ वक्‍त के लिए आपका दिल बहुत ही कमज़ोर हो जाता है। कभी-कभी तो अचानक ही आँखों से टप-टप आँसू बहने लगते हैं। एक स्त्री जिसके पति की मौत हो चुकी थी, वह जब भी खरीदारी करती (वह अकसर अपने पति के साथ खरीदारी किया करती थी) तो उसे रोना आ जाता था। अपनी पिछली आदत की वजह से वह अचानक उन्हीं चीज़ों को लेने लगती थी जो उसके पति को बहुत पसंद थीं। अगर आपके साथ ऐसा होता है, तो हिम्मत मत हारिए। और ऐसा मत सोचिए कि आपको अपने आँसू पी लेने चाहिए। याद रखिए कि रोना, शोक मनाने का कुदरती तरीका है और यह ज़रूरी भी है।

दोष की भावना से उबरना

जैसा कि पहले बताया गया है, कुछ लोग खुद को किसी अपने की मौत के लिए कसूरवार मानने लगते हैं। इसीलिए जब वफादार याकूब को यकीन दिलाया गया कि उसके बेटे को किसी “जंगली पशु” ने मार डाला है, तो उसका कलेजा छिद गया। याकूब ने ही यूसुफ को अपने भाइयों का हाल-चाल जानने के लिए भेजा था। इसलिए शायद याकूब का मन उसे बार-बार कोस रहा था कि ‘मैंने यूसुफ को अकेले क्यों भेजा? यह जानते हुए कि वह इलाका जंगली जानवरों से भरा पड़ा है मैंने क्यों उसे ऐसी जगह भेजा?’—उत्पत्ति 37:33-35, NHT.

शायद आपको लगता हो कि आपकी ही किसी लापरवाही की वजह से आपके अज़ीज़ की मौत हो गयी है। चाहे आप सचमुच कसूरवार हों या फिर आपको सिर्फ ऐसी गलतफहमी हो गई हो, मगर यह समझना कि इस तरह दोषी महसूस करना लाज़िमी है, अपने आप में फायदेमंद हो सकता है। मगर ऐसा मत सोचिए कि आपको ये भावनाएँ अपने अंदर दबाकर रख लेनी चाहिए। दोष की भावना से आप अंदर-ही-अंदर किस कदर घुट रहे हैं इसके बारे में किसी से बात कीजिए। तब आप मन में बहुत हलका महसूस करेंगे।

यकीन कीजिए कि हम चाहे एक इंसान से कितना ही प्यार क्यों न करें, उसकी ज़िंदगी हमारी मुट्ठी में नहीं है। और न ही हम उसे उन घटनाओं से पूरी तरह महफूज़ रख सकते हैं जो “समय और संयोग” के वश में हैं। (सभोपदेशक 9:11) और यह भी यकीन रखिए कि आप मरनेवाले की भलाई ही चाहते थे। उदाहरण के लिए, क्या आप उसे डॉक्टर के पास इसलिए जल्द-से-जल्द नहीं ले गए क्योंकि आप चाहते  थे कि आपका अज़ीज़ बीमारी से मर जाए? हरगिज़ नहीं! तो आप कैसे कह सकते हैं कि आप ही अपने अज़ीज़ की मौत के ज़िम्मेदार हैं? आप ज़िम्मेदार नहीं हैं।

एक माँ, कार दुर्घटना में मरनेवाली अपनी बेटी की मौत के लिए खुद को ज़िम्मेदार मानती थी। मगर उसने खुद को दोषी समझने की इस भावना पर काबू पाना सीखा। वह बताती है: “मैं खुद को कसूरवार ठहरा रही थी कि मैंने उसे बाहर क्यों भेजा। लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि ऐसी बातें सोचने का कोई तुक नहीं है। दरअसल उसे अपने पापा के साथ सामान खरीदने के लिए भेजना कोई गलत बात नहीं थी। यह एक भयानक हादसा था और मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती थी।”

फिर भी आप कहें ‘लेकिन शायद मैं कुछ ऐसा कह सकती थी या कर सकती थी जिससे यह सब ना होता।’ आपकी यह बात सच है, मगर क्या हम में से कोई भी पिता, माँ या बच्चा सिद्ध है? बाइबल यह बात हमारे ध्यान में लाती है: “हम सब बहुत बार चूक जाते हैं: जो कोई वचन में नहीं चूकता, वही तो सिद्ध मनुष्य है।” (याकूब 3:2; रोमियों 5:12) इसलिए इस हकीकत को कबूल कीजिए कि आप सिद्ध नहीं हैं। अगर आप हमेशा यही सोचते रहेंगे, कि ‘काश! मैंने ये किया होता, या वो किया होता,’ तो इससे कुछ बदलेगा नहीं, हाँ इतना ज़रूर होगा कि दुःख से उबरने में आपको और ज़्यादा समय लगेगा।

शायद आपको लगे कि आपके दोषी होने के कुछ ठोस कारण हैं। तो सबसे अहम बात पर गौर कीजिए, जो आपको अपनी दोष की भावना से बाहर निकलने में मदद करेगी। वह है, परमेश्‍वर की माफी। बाइबल हमें भरोसा दिलाती है: “हे याह, यदि तू अधर्म के कामों का लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा? परन्तु तू क्षमा करनेवाला है, जिस से तेरा भय माना जाए।” (भजन 130:3, 4) आप गुज़रे समय में जाकर गलतियों को तो सुधार नहीं सकते। मगर हाँ, आप पिछली गलतियों के लिए परमेश्‍वर से माफी ज़रूर माँग सकते हैं। लेकिन इसके बाद? अगर परमेश्‍वर आपकी गलतियों को माफ करने का वादा करता है, तो क्या आपको भी खुद को माफ नहीं कर देना चाहिए?—नीतिवचन 28:13; 1 यूहन्‍ना 1:9.

गुस्से पर काबू पाना

क्या आपको डॉक्टरों, नर्सों, दोस्तों, यहाँ तक कि मरनेवाले पर भी गुस्सा आता है? याद रखिए कि किसी को खो देने पर गुस्सा महसूस करना स्वाभाविक है। शायद यह गुस्सा किसी को खो देने के दुःख का ही हिस्सा है। एक लेखक ने कहा: “यह एहसास हो जाने पर ही कि आपको गुस्सा आ रहा है, न कि गुस्सा उतारने से, आप उसके बुरे परिणाम से बच सकते हैं।”

अपना गुस्सा निकालना या इस बारे में किसी से बात करना भी आपके लिए मददगार हो सकता है। मगर यह आप कैसे कर सकते हैं? बेशक, गुस्सा भड़काकर नहीं। बाइबल चेतावनी देती है कि काफी समय तक गुस्से को मन में रखना खतरनाक साबित हो सकता है। (नीतिवचन 14:29, 30) लेकिन अगर आप अपने किसी समझदार दोस्त से इस बारे में बात करेंगे, तो आपके मन को तसल्ली मिल सकती है। कुछ लोगों ने यह भी पाया है कि गुस्सा आने पर अच्छी कसरत करने से भी उन्हें राहत मिलती है।—इफिसियों 4:25, 26 भी देखिए।

हालाँकि अपनी भावनाओं के बारे में दूसरों से खुलकर बात करना ज़रूरी है मगर एक बात से आपको सावधान रहना भी है। वह यह है कि अपनी भावनाएँ व्यक्‍त करने और बिना सोचे-समझे उन्हें दूसरों पर थोप देने में बड़ा फर्क है। आप दिल में जो गुस्सा और खीझ महसूस कर रहे हैं, उसके लिए दूसरों को कसूरवार ठहराने की ज़रूरत नहीं। इसलिए अपनी भावनाओं के बारे में ज़रूर बात कीजिए लेकिन ऐसा ना हो मानो आप किसी के खिलाफ ज़हर उगल रहे हैं। (नीतिवचन 18:21) अपने दुःख पर काबू पाने का एक खास तरीका है जिसके बारे में हम अब चर्चा करेंगे।

परमेश्‍वर से मदद

बाइबल हमें यकीन दिलाती है: “यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।” (भजन 34:18) जी हाँ, जब किसी अपने की मौत हो जाती है, तो यह गम सहने के लिए सबसे बढ़कर परमेश्‍वर के साथ आपका रिश्‍ता आपकी मदद कर सकता है। कैसे? अभी तक हमने जिन कारगर सुझावों पर विचार किया, वे सभी परमेश्‍वर के वचन बाइबल पर आधारित हैं। इन सुझावों पर अमल करने से आपको अपना दुःख सहने में मदद मिलेगी।

लेकिन इसके अलावा, प्रार्थना की ताकत को कम मत समझिए। बाइबल हमसे आग्रह करती है: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा।” (भजन 55:22) अगर किसी हमदर्द दोस्त को अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करना इतना मददगार हो सकता है, तो सोचिए कि ‘हर तरह की तसल्ली देने वाले परमेश्‍वर’ से दिल खोलकर बात करना इससे भी कितना ज़्यादा मददगार साबित होगा!—2 कुरिन्थियों 1:3, हिन्दुस्तानी बाइबल।

ऐसी बात नहीं है कि प्रार्थना करने से सिर्फ हमें अच्छा महसूस होगा। “प्रार्थना के सुननेवाले” ने वादा किया है कि उसके जो सेवक सच्चे दिल से उससे पवित्र आत्मा माँगते हैं वह उन्हें ज़रूर देगा। (भजन 65:2; लूका 11:13) परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा या उसकी सक्रिय शक्‍ति आपको “असीम सामर्थ” दे सकती है, ताकि आप हर दिन का सामना कर पाएँ। (2 कुरिन्थियों 4:7) यह बात कभी मत भूलिए: परमेश्‍वर अपने वफादार सेवकों की हर तरह की समस्या का सामना करने में मदद कर सकता है।

एक माँ, जिसकी बच्ची गुज़र गयी थी, बताती है कि प्रार्थना से उसे और उसके पति को किस तरह अपना गम सहने की ताकत मिली। वह कहती है: “जब हम रात को घर पर होते और अपना दुःख सहना हमारे बस के बाहर हो जाता था तो हम साथ मिलकर ज़ोर-ज़ोर से प्रार्थना करते थे। अपनी बच्ची के गुज़रने के बाद जब हम पहली बार कलीसिया सभा में गए या उसके बिना पहले अधिवेशन में गए हमने हमेशा प्रार्थना की। अगर किसी दिन सवेरे उठते ही उसकी कमी खलती तो हम यहोवा से प्रार्थना करते कि वह हमें सहने की ताकत दे। पता नहीं क्यों, घर के अंदर अकेले कदम रखते ही मेरा कलेजा काँपने लगता था। इसलिए जब भी मैं अकेले घर आती, तो मैं प्रार्थना करती कि हे यहोवा, मुझे अपना दुःख सहने और शांत रहने की ताकत दीजिए।” इस वफादार स्त्री का यह अटल विश्‍वास है कि प्रार्थना ने वाकई उसकी मदद की। और यह बात पूरी तरह सच है। अगर आप बार-बार प्रार्थना करेंगे, तो आप भी पाएँगे कि ‘परमेश्‍वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे है, आपके हृदय और आपके विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।’—फिलिप्पियों 4:6, 7; रोमियों 12:12.

परमेश्‍वर जो मदद देता है, वह सचमुच फायदेमंद होती है। मसीही प्रेरित पौलुस ने कहा कि परमेश्‍वर ‘हमारे सब क्लेशों में शान्ति देता है; ताकि हम भी उन्हें शान्ति दे सकें, जो किसी प्रकार के क्लेश में हों।’ यह सच है कि परमेश्‍वर की ओर से मिलनेवाली मदद से आपका दुःख खत्म तो नहीं हो जाएगा मगर इससे आपके लिए दुःख सहना आसान हो सकता है। इसका मतलब यह बिलकुल नहीं कि आपको रोना नहीं आएगा या आप अपने अज़ीज़ को एकदम भूल जाएँगे। लेकिन इसका मतलब यह है कि परमेश्‍वर की मदद से आप अपनी भावनाओं पर काबू पा सकेंगे। और जैसे-जैसे आप अपने दुःख पर काबू पाएँगे, वैसे-वैसे आप दूसरों की भावनाओं को भी समझ सकेंगे और उनके हमदर्द बन पाएँगे। इस तरह आप ऐसे लोगों की मदद कर पाएँगे जो आपकी ही तरह दुःख सह रहे हैं।—2 कुरिन्थियों 1:4.