प्रेषितों के काम 10:1-48

10  कैसरिया में कुरनेलियुस नाम का एक आदमी था। वह उस फौजी टुकड़ी का अफसर* था जो इतालवी टुकड़ी* कहलाती थी।  वह एक भक्‍त इंसान था। वह और उसका पूरा घराना परमेश्‍वर का डर मानता था। वह लोगों को बहुत-से दान देता था और परमेश्‍वर के सामने गिड़गिड़ाकर बिनती किया करता था।  उसने दिन के करीब नौवें घंटे*+ में परमेश्‍वर के एक स्वर्गदूत को दर्शन में साफ देखा, जिसने उसके पास आकर कहा, “कुरनेलियुस!”  वह डर के मारे दूत को देखता रह गया और उसने कहा, “प्रभु, क्या हुआ?” दूत ने उससे कहा, “परमेश्‍वर ने तेरी प्रार्थनाएँ सुनी हैं और जो दान तू देता है उन पर ध्यान दिया है।+  इसलिए अब तू अपने आदमी भेजकर याफा से शमौन को बुलवा ले, जो पतरस भी कहलाता है।  वह चमड़े का काम करनेवाले शमौन के यहाँ मेहमान है, जिसका घर समुंदर के किनारे है।”  उस स्वर्गदूत के जाते ही कुरनेलियुस ने अपने घर के दो सेवकों को और परमेश्‍वर का डर माननेवाले अपने एक सैनिक को बुलाया, जो हमेशा उसकी सेवा में हाज़िर रहता था।  उसने उन्हें पूरी बात बताकर याफा भेजा।  अगले दिन जब कुरनेलियुस के सेवक सफर करते-करते शहर के पास आ पहुँचे, तब छठे घंटे* के करीब पतरस प्रार्थना करने के लिए घर की छत पर गया। 10  मगर उसे ज़ोरों की भूख लगी और वह कुछ खाना चाहता था। जब वे खाना तैयार कर रहे थे, तो उसे एक दर्शन मिला।*+ 11  और उसने देखा कि आकाश खुल गया और बड़ी चादर जैसा कुछ* नीचे आ रहा है। उसे चारों कोनों से पकड़कर धरती पर उतारा जा रहा है। 12  उसमें धरती पर पाए जानेवाले हर किस्म के जानवर* और रेंगनेवाले जीव-जंतु और आकाश के पक्षी हैं। 13  फिर पतरस को एक आवाज़ सुनायी दी, “पतरस उठ, इन्हें काटकर खा!” 14  मगर उसने कहा, “नहीं प्रभु, नहीं! मैंने कभी कोई दूषित और अशुद्ध चीज़ नहीं खायी है।”+ 15  फिर दूसरी बार उसी आवाज़ ने उससे कहा, “तू अब से उन चीज़ों को दूषित मत कहना जिन्हें परमेश्‍वर ने शुद्ध किया है।” 16  तीन बार ऐसा हुआ और फिर वह चादर जैसी चीज़* फौरन आकाश में उठा ली गयी। 17  पतरस बड़ी उलझन में था कि इस दर्शन का क्या मतलब हो सकता है। वह इस बारे में सोच ही रहा था कि तभी कुरनेलियुस के आदमी शमौन का घर पूछते-पूछते उसके दरवाज़े पर आ खड़े हुए।+ 18  उन्होंने ज़ोर से आवाज़ लगायी और पूछा कि शमौन जो पतरस कहलाता है, क्या वह यहीं ठहरा हुआ है। 19  पतरस दर्शन के बारे में सोच रहा था और पवित्र शक्‍ति+ ने उससे कहा, “देख! तीन आदमी तेरे बारे में पूछ रहे हैं। 20  उठ, नीचे जा और उनके साथ बेझिझक चला जा, क्योंकि मैंने ही उन्हें भेजा है।” 21  तब पतरस सीढ़ियाँ उतरकर उन आदमियों के पास गया और उसने कहा, “देखो! तुम जिसे ढूँढ़ रहे हो, वह मैं ही हूँ। यहाँ कैसे आना हुआ?” 22  उन्होंने कहा, “सेना-अफसर कुरनेलियुस+ ने हमें भेजा है। वह परमेश्‍वर का डर माननेवाला नेक इंसान है। सारे यहूदी भी उसकी तारीफ करते हैं। एक पवित्र स्वर्गदूत ने उसे परमेश्‍वर की तरफ से हिदायत दी है कि तुझे बुलवा ले और जो बातें तू बताएगा उन्हें सुने।” 23  यह सुनकर पतरस ने उन्हें अंदर बुलाया और अपना मेहमान बनाकर वहाँ ठहराया। अगले दिन पतरस उठा और उनके साथ निकल पड़ा और याफा के कुछ भाई भी उसके साथ गए। 24  दूसरे दिन वह कैसरिया पहुँचा। वहाँ कुरनेलियुस उनका इंतज़ार कर रहा था। उसने अपने रिश्‍तेदारों और करीबी दोस्तों को भी अपने घर बुला रखा था। 25  जब पतरस घर के अंदर गया, तो कुरनेलियुस उससे मिला और उसने पतरस के पैरों पर गिरकर उसे प्रणाम* किया। 26  मगर पतरस ने उसे उठाकर कहा, “खड़ा हो, मैं भी तेरे जैसा एक इंसान हूँ।”+ 27  पतरस उससे बातें करता हुआ अंदर गया और उसने देखा कि वहाँ बहुत लोग जमा हैं। 28  उसने उनसे कहा, “तुम अच्छी तरह जानते हो कि एक यहूदी के लिए दूसरी जाति के किसी इंसान से मिलना-जुलना या उसके यहाँ जाना भी नियम के खिलाफ है।+ मगर फिर भी परमेश्‍वर ने मुझे दिखाया है कि मैं किसी भी इंसान को दूषित या अशुद्ध न कहूँ।+ 29  इसलिए जब मुझे बुलाया गया, तो मैं बिना किसी एतराज़ के चला आया। अब मुझे बताओ कि तुमने मुझे किस वजह से बुलाया है।” 30  फिर कुरनेलियुस ने कहा, “आज से ठीक चार दिन पहले की बात है, जब मैं नौवें घंटे* में अपने घर में प्रार्थना कर रहा था, तब मैंने देखा कि एक आदमी उजले कपड़े पहने मेरे सामने आ खड़ा हुआ। 31  उसने मुझसे कहा, ‘कुरनेलियुस, परमेश्‍वर ने तेरी प्रार्थना सुन ली है और जो दान तू देता है उन पर उसने ध्यान दिया है। 32  इसलिए अब अपने आदमियों को याफा भेज और उस शमौन को, जो पतरस कहलाता है, बुलवा ले। वह चमड़े का काम करनेवाले शमौन के यहाँ मेहमान है, जिसका घर समुंदर किनारे है।’+ 33  इसलिए मैंने फौरन तुझे बुलावा भेजा और तूने यहाँ आकर हम पर मेहरबानी की है। अब इस वक्‍त, हम सब परमेश्‍वर के सामने हाज़िर हैं ताकि वे सारी बातें सुनें, जिन्हें सुनाने की आज्ञा यहोवा* ने तुझे दी है।” 34  तब पतरस ने बोलना शुरू किया, “अब मैं अच्छी तरह समझ गया हूँ कि परमेश्‍वर भेदभाव नहीं करता,+ 35  मगर हर वह इंसान जो उसका डर मानता है और सही काम करता है, फिर चाहे वह किसी भी राष्ट्र का क्यों न हो, उसे वह स्वीकार करता है।+ 36  परमेश्‍वर ने इसराएलियों के पास एक संदेश भेजा, उन्हें यह खुशखबरी दी कि यीशु मसीह के ज़रिए परमेश्‍वर के साथ शांति कायम की जा सकती है।+ यही यीशु सबका प्रभु है।+ 37  तुम जानते हो कि जब यूहन्‍ना ने बपतिस्मे का प्रचार किया तो उसके बाद गलील में किस बात की चर्चा होने लगी और पूरे यहूदिया में फैल गयी,+ 38  यानी नासरत के यीशु की चर्चा। तुमने सुना है कि परमेश्‍वर ने किस तरह पवित्र शक्‍ति से उसका अभिषेक किया+ और उसे ताकत दी और वह पूरे देश में भलाई करता रहा और शैतान* के सताए हुओं को ठीक करता रहा,+ क्योंकि परमेश्‍वर उसके साथ था।+ 39  और हम उन सभी कामों के गवाह हैं जो उसने यहूदियों के देश में और यरूशलेम में किए थे। मगर उन्होंने उसे काठ* पर लटकाकर मार डाला। 40  परमेश्‍वर ने इसी यीशु को तीसरे दिन ज़िंदा किया+ और उसे लोगों पर प्रकट होने दिया।* 41  मगर सभी लोगों पर नहीं बल्कि उन गवाहों पर जिन्हें परमेश्‍वर ने पहले से चुना था, यानी हम पर। जब वह मरे हुओं में से ज़िंदा हो गया तो उसके बाद हमने उसके साथ खाया-पीया।+ 42  उसने हमें यह आज्ञा भी दी कि हम लोगों को प्रचार करें और इस बात की अच्छी तरह गवाही दें+ कि यह वही है जिसे परमेश्‍वर ने जीवितों और मरे हुओं का न्यायी ठहराया है।+ 43  सारे भविष्यवक्‍ताओं ने इसी यीशु की गवाही दी+ कि जो कोई उस पर विश्‍वास करेगा वह उसके नाम से पापों की माफी पाएगा।”+ 44  पतरस ये बातें बोल ही रहा था कि तभी पवित्र शक्‍ति उन सभी लोगों पर उतरी जो वचन सुन रहे थे।+ 45  पतरस के साथ आए सभी विश्‍वासी भाई, जिनका खतना हो चुका था,* वे दंग रह गए क्योंकि पवित्र शक्‍ति का मुफ्त वरदान, गैर-यहूदियों को भी दिया जा रहा था। 46  उन्होंने उन लोगों को अलग-अलग भाषाएँ* बोलते और परमेश्‍वर की बड़ाई करते सुना।+ तब पतरस ने कहा, 47  “इन लोगों ने भी हमारी तरह पवित्र शक्‍ति पायी है, अब कौन इन्हें पानी में बपतिस्मा लेने से रोक सकता है?”+ 48  फिर पतरस ने यह आज्ञा दी कि उन्हें यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा दिया जाए।+ इसके बाद उन्होंने पतरस से बिनती की कि वह कुछ दिन वहीं ठहर जाए।

कई फुटनोट

या “शतपति,” जिसकी कमान में 100 सैनिक होते थे।
या “टोली,” 600 सैनिकों से बनी रोमी टुकड़ी।
यानी दोपहर करीब 3 बजे।
यानी दोपहर करीब 12 बजे।
या “उस पर बेसुधी छा गयी।”
शा., “एक तरह का बरतन।”
शा., “चार-पैरोंवाले प्राणी।”
शा., “बरतन।”
या “दंडवत।”
यानी दोपहर करीब 3 बजे।
अति. क5 देखें।
शा., “इबलीस।” शब्दावली देखें।
या “पेड़।”
या “को दिखने दिया।”
या “वफादार जन।”
शा., “दूसरी ज़बान।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो