व्यवस्थाविवरण 32:1-52

32  “हे आकाश, मैं जो कह रहा हूँ उस पर कान लगा,हे धरती, मेरी बातें सुन।   मेरी हिदायतें बारिश की तरह बरसेंगी,मेरी बातें ओस की बूँदों की तरह टपकेंगी,जैसे हरी घास पर फुहारऔर पौधों पर बौछार होती है।   मैं यहोवा के नाम का ऐलान करूँगा।+ हमारे परमेश्‍वर की महानता का बखान करूँगा!+   वह चट्टान है, उसका काम खरा* है,+क्योंकि वह जो कुछ करता है न्याय के मुताबिक करता है।+ वह विश्‍वासयोग्य परमेश्‍वर है+ जो कभी अन्याय नहीं करता,+वह नेक और सीधा-सच्चा है।+   मगर उन्हीं लोगों ने दुष्ट काम किए।+ वे परमेश्‍वर के बच्चे नहीं हैं, खोट उन्हीं में है।+ वे टेढ़ी और भ्रष्ट पीढ़ी के लोग हैं!+   हे मूर्खो, बेअक्ल लोगो,+क्या यहोवा के एहसानों का तुम यह सिला दोगे?+ क्या वह तुम्हारा पिता नहीं जो तुम्हें वजूद में लाया था,+क्या उसी ने तुम्हें नहीं बनाया और मज़बूती से कायम किया?   ज़रा बीते दिन याद करो,गुज़रे ज़माने के बारे में सोचो;अपने पिता से पूछो, वह तुम्हें बताएगा,+अपने मुखियाओं से पूछो, वे तुम्हें सुनाएँगे।   जब परम-प्रधान ने सब जातियों को उनकी विरासत दी,+जब उसने आदम की संतानों* को एक-दूसरे से अलग किया,+तब उसने इसराएलियों की तादाद को ध्यान में रखते हुएसब जातियों की सरहदें तय कीं।+   यहोवा के लोग उसकी अपनी जागीर हैं,+याकूब उसकी विरासत है।+ 10  उसने याकूब को एक वीरान देश में पाया,+एक सुनसान रेगिस्तान में, जहाँ हुआँ-हुआँ करते जानवरों की आवाज़ें गूँजती थीं।+ वह उसके इर्द-गिर्द घूमकर उसकी हिफाज़त करता रहा, उसकी देखभाल करता रहा,+अपनी आँख की पुतली की तरह उसने उसकी रक्षा की।+ 11  जैसे एक उकाब घोंसले को हिला-हिलाकर अपने बच्चों को गिराता हैऔर उनके ऊपर मँडराता है,अपने पंख फैलाकर उन्हें ले लेता है,अपने डैनों से उन्हें उठा लेता है,+ 12  उसी तरह यहोवा अकेला उसकी* अगुवाई करता रहा,+कोई पराया देवता उसके साथ नहीं था।+ 13  परमेश्‍वर ने उसे धरती की ऊँची-ऊँची जगहों पर कब्ज़ा दिलाया,+जिस वजह से उसने खेत की उपज खायी।+ परमेश्‍वर ने उसे चट्टान का शहद खिलायाऔर चकमक चट्टान का तेल पिलाया। 14  वह उसे गायों का मक्खन, भेड़-बकरियों का दूध,मोटी-ताज़ी भेड़ों, बाशान के मेढ़ों और बकरों का गोश्‍तऔर सबसे बढ़िया किस्म का गेहूँ खाने को देता रहा।+और तुमने रसीले अंगूरों* से बनी दाख-मदिरा भी पी। 15  जब यशूरून* मोटा हो गया, तो वह बागी बन गया और लात मारने लगा। तुझ पर चरबी चढ़ गयी है, तू मोटा हो गया है, फैल गया है।+ इसीलिए उसने परमेश्‍वर को छोड़ दिया जिसने उसे बनाया था,+उसने अपने उद्धार की चट्टान को तुच्छ जाना। 16  उन्होंने पराए देवताओं की पूजा करके उसका क्रोध भड़काया,+वे अपनी घिनौनी चीज़ों से उसे गुस्सा दिलाते रहे।+ 17  वे परमेश्‍वर के लिए नहीं, दुष्ट स्वर्गदूतों के लिए बलि चढ़ाते थे,+ऐसे देवताओं के लिए जिन्हें वे नहीं जानते थे,नए-नए देवताओं के लिए जो अभी-अभी प्रकट हुए हैं,जिन्हें तुम्हारे बाप-दादे नहीं जानते थे। 18  तुम उस चट्टान को भूल गए,+ अपने पिता को जिसने तुम्हें पैदा किया था,तुमने उस परमेश्‍वर को याद नहीं रखा जिसने तुम्हें जन्म दिया।+ 19  जब यहोवा ने यह देखा तो उसने उन्हें ठुकरा दिया,+क्योंकि उसके बेटे-बेटियों ने उसे गुस्सा दिलाया। 20  इसलिए उसने कहा, ‘मैं उनसे अपना मुँह फेर लूँगा,+मैं देखता हूँ कि उनका क्या होता है। इस पीढ़ी के लोग टेढ़े हैं,+ऐसे बेटे हैं जो कभी विश्‍वासयोग्य नहीं रहते।+ 21  जो ईश्‍वर है ही नहीं उसे मानकर उन्होंने मेरा क्रोध भड़काया,+अपनी निकम्मी मूरतों को पूजकर मुझे गुस्सा दिलाया।+ इसलिए मैं भी ऐसे लोगों के ज़रिए उन्हें जलन दिलाऊँगा जिन्हें कुछ नहीं समझा जाता,+एक मूर्ख जाति के ज़रिए उन्हें गुस्सा दिलाऊँगा।+ 22  मेरे क्रोध ने आग की चिंगारी भड़कायी है,+जो कब्र की गहराई तक जलती रहेगी,+धरती और उसकी उपज भस्म कर देगी,पहाड़ों की नींव में आग लगा देगी। 23  मैं उनकी मुसीबतें बढ़ा दूँगा,अपने तीर उन पर चला दूँगा। 24  वे भूख से बेहाल हो जाएँगे,+तेज़ बुखार और भयानक विनाश से मिट जाएँगे।+ मैं उनके पीछे खूँखार शिकारी जानवरऔर ज़मीन पर रेंगनेवाले ज़हरीले साँप छोड़ दूँगा।+ 25  बाहर तलवार उनके बच्चों को उनसे छीन लेगी,+तो अंदर वे डर से मर जाएँगे,+चाहे लड़के हों या लड़कियाँ,दूध-पीते बच्चे हों या पके बालवाले, सबका यही हाल होगा।+ 26  मैं उनसे यह ज़रूर कहता, “मैं उन्हें तितर-बितर कर दूँगा,लोगों के बीच से उनकी याद मिटा दूँगा,” 27  अगर मुझे इस बात की चिंता न होती कि दुश्‍मन क्या कहेंगे,+क्योंकि मेरे बैरी इसका गलत मतलब निकाल बैठेंगे।+ वे शायद कहेंगे, “हमने अपनी ताकत से जीता है,+इसमें यहोवा का कोई हाथ नहीं।” 28  इसराएल ऐसी जाति है जिसमें अक्ल नाम की चीज़ है ही नहीं,*उनमें बिलकुल समझ नहीं है।+ 29  काश! उनमें बुद्धि होती।+ तब वे इस बारे में गहराई से सोचते।+ वे अपने अंजाम पर गौर करते।+ 30  भला एक अकेला 1,000 लोगों का पीछा कैसे कर सकता है? और दो जन 10,000 लोगों को कैसे भगा सकते हैं?+ यह इसलिए हो पाया क्योंकि इसराएल की चट्टान ने उन्हें बेच दिया,+यहोवा ने उन्हें दुश्‍मनों के हवाले कर दिया। 31  दुश्‍मनों की चट्टान हमारी चट्टान जैसी नहीं है,+हमारे दुश्‍मन भी यह जान गए हैं।+ 32  उनकी अंगूर की बेल सदोम की अंगूर की बेल सेऔर अमोरा के बाग से निकली है।+ उनके अंगूर ज़हरीले हैं,उनके गुच्छे कड़वे हैं।+ 33  उनकी दाख-मदिरा साँपों का ज़हर है,नागों का खतरनाक ज़हर। 34  मैंने उनकी सारी करतूतें जमा कर रखी हैं,उन्हें अपने भंडार-घर में मुहरबंद कर रखा है।+ 35  बदला लेना और सज़ा देना मेरा काम है,+वक्‍त आने पर दुष्टों के पैर फिसलेंगे,+क्योंकि उनकी तबाही का दिन पास आ गया है,जो अंजाम उनके लिए तय है वह उन पर जल्द आनेवाला है।’ 36  यहोवा अपने लोगों का न्याय करेगा,+अपने सेवकों पर तरस खाएगा,*+जब वह देखेगा कि उनकी ताकत कम हो गयी है,सिर्फ लाचार और कमज़ोर लोग रह गए हैं। 37  फिर वह कहेगा, ‘कहाँ गए उनके देवता,+वह चट्टान जिसकी उन्होंने पनाह ली थी, 38  जो उनके बलिदानों की चरबी* खाया करते थे,उनके अर्घ की दाख-मदिरा पीते थे?+ वे आकर तुम्हारी मदद करें। वे तुम्हारी पनाह बनें। 39  अब तो जान लो, मैं ही परमेश्‍वर हूँ,+मेरे सिवा कोई और देवता नहीं है।+ मैं ही मौत देता हूँ और मैं ही ज़िंदा करता हूँ।+ मैं ही घाव देता हूँ+ और मैं ही ठीक करता हूँ,+मेरे हाथ से कोई नहीं छुड़ा सकता।+ 40  मैं स्वर्ग की तरफ हाथ उठाकर कहता हूँ,“मैं जो सदा तक जीवित रहता हूँ, अपने जीवन की शपथ खाता हूँ,”+ 41  जब मैं अपनी चमचमाती तलवार तेज़ करूँगा,सज़ा देने के लिए अपना हाथ उठाऊँगा,+तो अपने दुश्‍मनों को उनका बदला चुकाऊँगा,+मुझसे नफरत करनेवालों को उनके किए की सज़ा दूँगा। 42  मैं घात किए हुए लोगों और बंदियों के खून सेअपने तीरों को मदहोश कर दूँगा,दुश्‍मन के सरदारों के सिर काटकरउन्हें अपनी तलवार का कौर बना दूँगा।’ 43  राष्ट्रो, परमेश्‍वर की प्रजा के साथ खुशियाँ मनाओ,+क्योंकि वह अपने सेवकों के खून का बदला लेगा,+अपने दुश्‍मनों को उनके किए की सज़ा देगा+और अपने लोगों के देश के लिए प्रायश्‍चित* करेगा।” 44  इस तरह मूसा ने इस गीत के सारे बोल लोगों को कह सुनाए।+ उसने और नून के बेटे होशेआ*+ ने लोगों को यह गीत सुनाया। 45  जब मूसा सभी इसराएलियों को ये बातें सुना चुका, 46  तो उसने उनसे कहा, “मैंने आज तुम्हें जो-जो चेतावनियाँ दी हैं उन्हें तुम अपने दिल में बिठा लेना+ ताकि तुम अपने बेटों को इस कानून की सारी बातें सख्ती से मानने की आज्ञा दे सको।+ 47  ये कोई खोखली बातें नहीं हैं, इन्हीं पर तुम्हारी ज़िंदगी टिकी है।+ अगर तुम इन पर चलोगे तो उस देश में लंबी ज़िंदगी जीओगे, जिसे तुम यरदन पार जाकर अपने अधिकार में करनेवाले हो।” 48  उसी दिन यहोवा ने मूसा से कहा, 49  “तू इस अबारीम पहाड़ पर जा+ जो मोआब देश में यरीहो के सामने है और नबो की चोटी पर चढ़।+ वहाँ से तू कनान देश को देख जिसे मैं इसराएलियों के अधिकार में करनेवाला हूँ।+ 50  फिर उसी पहाड़ पर तेरी मौत हो जाएगी और तुझे दफनाया जाएगा,* ठीक जैसे होर पहाड़ पर तेरे भाई हारून की मौत के बाद उसे भी दफनाया गया था+ 51  क्योंकि तुम दोनों सिन वीराने में कादेश के मरीबा के सोते के पास इसराएलियों के बीच मेरे विश्‍वासयोग्य नहीं रहे+ और तुमने उनके सामने मुझे पवित्र नहीं ठहराया।+ 52  जो देश मैं इसराएलियों को देनेवाला हूँ उसे तू दूर से देखेगा, मगर उसमें कदम नहीं रख पाएगा।”+

कई फुटनोट

या “परिपूर्ण।”
या शायद, “मानवजाति।”
यानी याकूब की।
शा., “अंगूरों के खून।”
मतलब “सीधा-सच्चा जन,” इसराएल को दी गयी सम्मान की उपाधि।
या शायद, “जो सलाह पर ध्यान नहीं देता।”
या “के लिए पछतावा महसूस करेगा।”
या “उनके बढ़िया-से-बढ़िया बलिदान।”
या “को शुद्ध।”
यह यहोशू का असल नाम था। होशेआ, होशायाह नाम का छोटा रूप है जिसका मतलब है, “याह के ज़रिए बचाया गया; याह ने बचाया।”
शा., “तू अपने लोगों में जा मिलेगा।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो