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अपनी आज़ादी को अनमोल समझिए

अपनी आज़ादी को अनमोल समझिए

“जहाँ यहोवा की पवित्र शक्‍ति है, वहाँ आज़ादी है।”—2 कुरिं. 3:17.

गीत: 31, 32

1, 2. (क) अपने फैसले खुद करने की आज़ादी के बारे में लोगों की क्या राय है? (ख) बाइबल इस बारे में क्या सिखाती है? (ग) हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

एक औरत को जब कोई फैसला करना था तो उसने अपनी सहेली से कहा, “मुझे सोचने के लिए मत कहो, बस इतना बता दो कि मुझे क्या करना चाहिए। यह मेरे लिए आसान रहेगा।” यह औरत चाहती थी कि उसकी सहेली उसके लिए फैसला करे। वह अपने सृष्टिकर्ता का दिया अनमोल तोहफा इस्तेमाल नहीं करना चाहती थी। वह तोहफा है, अपने फैसले खुद करने की आज़ादी। क्या आप अपने फैसले खुद लेना पसंद करते हैं? या आप चाहते हैं कि दूसरे आपके लिए फैसला करें? फैसला करने की हमें जो आज़ादी मिली है, उसके बारे में आप क्या सोचते हैं?

2 इस आज़ादी के बारे में लोगों की अलग-अलग राय है। कुछ कहते हैं कि हमारे पास ऐसी कोई आज़ादी नहीं है क्योंकि हम क्या करेंगे और क्या नहीं, यह ऊपरवाले ने पहले से तय कर दिया है। दूसरे कहते हैं कि जब हमें कोई भी काम करने की खुली छूट हो, तब हम सही मायनों में आज़ाद हैं। लेकिन बाइबल ऐसा नहीं सिखाती। यह बताती है कि परमेश्वर ने हममें से हरेक को सोच-समझकर फैसला करने की आज़ादी और काबिलीयत दी है। (यहोशू 24:15 पढ़िए।) बाइबल में हमें इन सवालों के जवाब भी मिलते हैं: क्या हमारी इस आज़ादी की कुछ सीमाएँ हैं? फैसला करते वक्‍त हम इस आज़ादी का कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं? हम अपने फैसलों से कैसे दिखा सकते हैं कि हम यहोवा से बहुत प्यार करते हैं? हम कैसे दूसरों के फैसलों का आदर कर सकते हैं?

हम यहोवा और यीशु से क्या सीख सकते हैं?

3. यहोवा अपनी आज़ादी का कैसे इस्तेमाल करता है?

3 सिर्फ यहोवा ही ऐसा शख्स है जिसके पास पूरी आज़ादी है, मगर वह जिस तरह अपनी आज़ादी का इस्तेमाल करता है उससे हम एक अच्छी बात सीखते हैं। मिसाल के लिए, यहोवा ने इसराएल राष्ट्र को अपने लोग और अपनी “खास जागीर” होने के लिए चुना था। (व्यव. 7:6-8) यहोवा ने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि उसने अपने दोस्त अब्राहम से जो वादा किया था, वह उसे पूरा करना चाहता था। (उत्प. 22:15-18) इसके अलावा यहोवा जब भी अपनी आज़ादी का इस्तेमाल करता है तो प्यार और न्याय के गुणों के मुताबिक करता है। यह हम कैसे जानते हैं? जब इसराएलियों ने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी तो उसने उन्हें सुधारने के लिए सज़ा दी। लेकिन जब इसराएलियों ने सच्चा पश्‍चाताप किया, तो उसने उन पर दया की और उनके साथ प्यार से पेश आया। उसने कहा, “मैं उनकी विश्वासघात करने की बीमारी दूर कर दूँगा। मैं अपनी मरज़ी से उन्हें प्यार करूँगा।” (होशे 14:4) यहोवा ने अपनी आज़ादी का इस्तेमाल दूसरों की मदद करने के लिए किया। उसने हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल रखी!

4, 5. (क) अपने फैसले खुद करने की आज़ादी परमेश्वर ने सबसे पहले किसे दी? और उसने यह आज़ादी कैसे इस्तेमाल की? (ख) हममें से हरेक को कौन-सा सवाल करना चाहिए?

4 जब यहोवा ने स्वर्गदूतों और इंसानों को बनाना शुरू किया तो उसने उन्हें अपने फैसले खुद करने की आज़ादी दी। यीशु को सबसे पहले यह आज़ादी मिली। वह यहोवा की सबसे पहली सृष्टि था और उसे परमेश्वर की छवि में बनाया गया था। (कुलु. 1:15) यीशु ने अपनी आज़ादी कैसे इस्तेमाल की? धरती पर आने से पहले यीशु ने परमेश्वर का वफादार बने रहने का फैसला किया। उसने शैतान की बगावत में उसका साथ नहीं दिया। फिर जब वह धरती पर था और शैतान ने उसे फुसलाने की कोशिश की तब यीशु ने उसकी पेशकश ठुकरा दी। (मत्ती 4:10) अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात, यीशु ने अपने पिता को यकीन दिलाया कि वह उसकी मरज़ी पूरी करना चाहता है। उसने कहा, “हे पिता, अगर तेरी मरज़ी हो, तो यह प्याला मेरे सामने से हटा दे। मगर मेरी मरज़ी नहीं बल्कि तेरी मरज़ी पूरी हो।” (लूका 22:42) क्या हम यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं? क्या हम भी अपनी आज़ादी का इस्तेमाल यहोवा की मरज़ी पूरी करने और उसका आदर करने के लिए कर सकते हैं?

5 जी हाँ, हम ऐसा कर सकते हैं। क्योंकि हमें भी परमेश्वर की छवि में बनाया गया है। (उत्प. 1:26) लेकिन हमारे पास वह आज़ादी नहीं, जो यहोवा के पास है। परमेश्वर का वचन समझाता है कि यहोवा ने हमारी आज़ादी की कुछ सीमाएँ ठहरायी हैं और वह चाहता है कि हम इन्हें मानें। मिसाल के लिए, परिवार में पत्नियों को अपने पति के और बच्चों को अपने माता-पिता के अधीन रहना है। (इफि. 5:22; 6:1) इन सीमाओं का हमारी आज़ादी पर क्या असर पड़ता है? इस सवाल का जवाब जानने से यह तय होगा कि हमारा भविष्य कैसा होगा।

अपनी आज़ादी का सही और गलत इस्तेमाल

6. मिसाल देकर समझाइए कि हमारी आज़ादी की सीमाएँ होना क्यों ज़रूरी है।

6 जिस आज़ादी की सीमाएँ हों, क्या उसे सचमुच में आज़ादी कहा जा सकता है? बिलकुल कहा जा सकता है! क्योंकि सीमाएँ ठहराने से हमारी रक्षा होती है। मिसाल के लिए, आप गाड़ी से दूर एक शहर जाने का फैसला करते हैं। लेकिन ट्रैफिक के कोई भी नियम नहीं हैं। हर कोई अपनी रफ्तार से गाड़ी चला सकता है और सड़क के किसी भी तरफ चला सकता है। ऐसे में क्या आप उस सड़क पर खुद को सुरक्षित महसूस करेंगे? हरगिज़ नहीं! सीमाओं का होना ज़रूरी है तभी हम सच्ची आज़ादी का फायदा उठा सकते हैं। अब आइए बाइबल से कुछ लोगों के उदाहरणों पर गौर करें जो दिखाते हैं कि यहोवा की ठहरायी सीमाएँ हमारे लिए कितनी फायदेमंद होती हैं।

7. (क) आदम और जानवरों में एक फर्क क्या था? (ख) समझाइए कि आदम ने अपनी आज़ादी का कैसे इस्तेमाल किया।

7 जब यहोवा ने पहले इंसान आदम को बनाया तो उसे वही तोहफा दिया जो उसने स्वर्गदूतों को दिया था। यहोवा ने आदम को अपने फैसले खुद करने की आज़ादी दी। लेकिन परमेश्वर ने यह आज़ादी जानवरों को नहीं दी। आदम ने कैसे अपनी आज़ादी का सही इस्तेमाल किया? उसे जानवरों के नाम रखने का मज़ेदार काम मिला। परमेश्वर सारे जानवरों को “आदमी के पास लाने लगा ताकि देखे कि आदमी हरेक को क्या नाम देता है।” आदम ने हर जानवर को बड़े ध्यान से देखा और फिर उसके हिसाब से उसे एक नाम दिया। उसने जो नाम दिए यहोवा ने उन्हें बदला नहीं। इसके बजाय, बाइबल बताती है, “आदमी ने उन जीव-जंतुओं को जिस-जिस नाम से पुकारा वही उनका नाम हो गया।”—उत्प. 2:19.

8. आदम ने किस तरह अपनी आज़ादी का गलत इस्तेमाल किया और इसका क्या अंजाम हुआ?

8 यहोवा ने आदम को एक और ज़िम्मेदारी दी। उसे पूरी धरती को एक खूबसूरत बगीचा बनाना था। परमेश्वर ने कहा, “फूलो-फलो और गिनती में बढ़ जाओ, धरती को आबाद करो और इस पर अधिकार रखो। समुंदर की मछलियों, आसमान में उड़नेवाले जीवों और ज़मीन पर चलने-फिरनेवाले सब जीव-जंतुओं पर अधिकार रखो।” (उत्प. 1:28) लेकिन आदम ने परमेश्वर की ठहरायी सीमाओं को लाँघने का फैसला किया। कैसे? उसने उस पेड़ का फल खाया जिसे खाने से परमेश्वर ने मना किया था। आदम ने अपनी आज़ादी का गलत इस्तेमाल किया इसीलिए हज़ारों सालों से इंसान दुख झेलता आ रहा है। (रोमि. 5:12) आइए हम यह कभी न भूलें कि आदम के फैसले के क्या ही दर्दनाक अंजाम हुए हैं। इससे हमें अपनी आज़ादी का सही तरीके से इस्तेमाल करने और यहोवा की ठहरायी सीमाओं को मानने का बढ़ावा मिलेगा।

9. यहोवा ने इसराएलियों के आगे क्या चुनाव रखा और उन्होंने क्या वादा किया?

9 सभी इंसान आदम और हव्वा के बच्चे हैं इसलिए कोई भी परिपूर्ण नहीं और सब मरते हैं। लेकिन इंसानों के पास अब भी यह आज़ादी है कि वे अपने फैसले खुद करें। परमेश्वर जिस तरह इसराएल राष्ट्र के साथ पेश आया था, उससे हम यह बात साफ समझ सकते हैं। यहोवा ने उनके आगे यह चुनाव रखा कि अगर वे चाहते हैं तो परमेश्वर की खास जागीर बन सकते हैं। (निर्ग. 19:3-6) इसराएल राष्ट्र ने यहोवा के लोग होने और उसकी ठहरायी सीमाओं को मानने का फैसला किया। उन्होंने कहा, “यहोवा ने जो-जो कहा है, वह सब करना हमें मंज़ूर है।” (निर्ग. 19:8) पर अफसोस, आगे चलकर इसराएलियों ने अपनी आज़ादी का गलत इस्तेमाल किया और यहोवा से किया अपना वादा तोड़ दिया। उनके उदाहरण से हम एक ज़रूरी सबक सीखते हैं। वह यह कि यह आज़ादी परमेश्वर की तरफ से एक तोहफा है और हम हमेशा इसकी कदर करें, यहोवा के करीब बने रहें और उसके कानूनों को मानें।—1 कुरिं. 10:11.

10. कौन-से उदाहरण दिखाते हैं कि पापी इंसान अपनी आज़ादी का सही इस्तेमाल कर सकते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

10 इब्रानियों अध्याय 11 में ऐसे 16 वफादार आदमी-औरतों के नाम दिए गए हैं जिन्होंने यहोवा की ठहरायी सीमाओं को मानने का फैसला किया। इस वजह से उन्हें कई आशीषें और एक शानदार भविष्य की आशा मिली। मिसाल के लिए, नूह में मज़बूत विश्वास था और उसने परमेश्वर की हिदायतें मानकर एक जहाज़ बनाने का फैसला किया ताकि अपने परिवार और आनेवाली पीढ़ियों को बचा सके। (इब्रा. 11:7) अब्राहम और सारा ने खुशी-खुशी परमेश्वर की आज्ञा मानी और उस देश के लिए निकल पड़े जिसे देने का वादा परमेश्वर ने उनसे किया था। जब उनके पास अपने शहर ऊर “लौटने का मौका था,” तब भी उन्होंने अपना ध्यान परमेश्वर के वादे पर लगाए रखा। बाइबल बताती है, “वे एक बढ़िया जगह पाने की कोशिश में आगे बढ़ रहे” थे। (इब्रा. 11:8, 13, 15, 16) मूसा ने मिस्र के खज़ानों को ठुकरा दिया और “चंद दिनों के लिए पाप का सुख भोगने के बजाय, उसने परमेश्वर के लोगों के साथ दुख भोगने का चुनाव किया।” (इब्रा. 11:24-26) आइए हम इन लोगों की विश्वास की मिसाल पर चलें और यहोवा की मरज़ी पूरी करने के लिए अपनी आज़ादी का इस्तेमाल करें और इस तरह इस तोहफे के लिए अपनी कदर दिखाएँ।

11. (क) अपनी आज़ादी का इस्तेमाल करके हम कौन-सी खुशी पा सकते हैं? (ख) अपनी आज़ादी का सही इस्तेमाल करने के लिए क्या बात आपको उभारती है?

11 शायद हमें यह आसान लगे कि कोई दूसरा हमारे लिए फैसले करे लेकिन ऐसे में हम अपनी आज़ादी से मिलनेवाली एक बड़ी खुशी पाने से चूक सकते हैं। कौन-सी खुशी? वही जो व्यवस्थाविवरण 30:19, 20 (पढ़िए।) में बतायी गयी है। आयत 19 में लिखा है कि परमेश्वर ने इसराएलियों के आगे दो चीज़ें रखीं जिनमें से एक उन्हें चुननी थी। आयत 20 बताती है कि यहोवा ने उन्हें यह दिखाने का मौका दिया था कि वे उससे कितना प्यार करते हैं। हम भी चुन सकते हैं कि हम यहोवा की उपासना करेंगे। हमारे पास भी यह अनोखा मौका है कि हम अपनी आज़ादी का इस्तेमाल यहोवा का आदर करने के लिए करें और यह दिखाएँ कि हम उससे बेहद प्यार करते हैं।

अपनी आज़ादी का गलत इस्तेमाल मत कीजिए

12. हमें जो तोहफा दिया गया है, उसके साथ हमें क्या नहीं करना चाहिए?

12 मान लीजिए कि आप अपने दोस्त को एक बहुत ही कीमती तोहफा देते हैं। लेकिन वह आपका तोहफा कचरे में फेंक देता है या उससे दूसरों को नुकसान पहुँचाता है। तब आपको कैसा लगेगा? बेशक आपको दुख होगा। यहोवा ने भी हमें खुद फैसले करने की आज़ादी दी है। जब वह देखता है कि लोग फैसला करते वक्‍त इस तोहफे का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं या इससे दूसरों को नुकसान पहुँचा रहे हैं तो उसे बहुत दुख होता है। बाइबल बताती है कि “आखिरी दिनों में” लोग “एहसान न माननेवाले” होंगे। (2 तीमु. 3:1, 2) तो हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम यहोवा के दिए इस अनमोल तोहफे के लिए एहसानमंद हैं? हम इस तोहफे का गलत इस्तेमाल करने से कैसे बच सकते हैं?

13. एक मसीही किस तरह अपनी आज़ादी का गलत इस्तेमाल करने से बच सकता है?

13 हम सभी के पास यह फैसला करने की आज़ादी है कि हम किसे अपना दोस्त बनाएँगे, कैसे कपड़े पहनेंगे, कैसा बनाव-सिंगार करेंगे और किस तरह का मनोरंजन करेंगे। हम शायद ऐसे फैसले करें जो यहोवा को पसंद न हों या हम दुनिया के लोगों की तरह फैशन करें और यह बहाना बनाएँ कि हमें अपने फैसले खुद करने की आज़ादी है। (1 पतरस 2:16 पढ़िए।) लेकिन अपनी आज़ादी का इस्तेमाल “शरीर की इच्छाएँ पूरी करने” के बजाय आइए ठान लें कि हम “सबकुछ परमेश्वर की महिमा के लिए” करेंगे।—गला. 5:13; 1 कुरिं. 10:31.

14. अपनी आज़ादी का इस्तेमाल करते वक्‍त हमें क्यों यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए?

14 यहोवा कहता है, “मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूँ, जो तुझे तेरे भले के लिए सिखाता हूँ और जिस राह पर तुझे चलना चाहिए उसी पर ले चलता हूँ।” (यशा. 48:17) सही फैसला करने के लिए हमें यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए और उसकी ठहरायी सीमाओं को मानना चाहिए। हम इस बात को कबूल करते हैं कि “इंसान को यह अधिकार नहीं कि वह अपना रास्ता तय करे। उसे यह अधिकार भी नहीं कि वह अपने कदमों को राह दिखाए।” (यिर्म. 10:23) आदम और विश्वासघाती इसराएलियों ने यहोवा की ठहरायी सीमाओं को मानने से इनकार कर दिया और अपनी समझ का सहारा लिया। आइए हम उनके जैसी गलती न करें। हम खुद पर भरोसा रखने के बजाय ‘पूरे दिल से यहोवा पर भरोसा रखें।’—नीति. 3:5.

दूसरों की आज़ादी का आदर कीजिए

15. गलातियों 6:5 में दिए सिद्धांत से हम क्या सीखते हैं?

15 यहोवा की ठहरायी एक सीमा यह है कि हमें दूसरों की आज़ादी का आदर करना चाहिए। क्यों? क्योंकि हर इंसान के पास अपने फैसले खुद करने की आज़ादी है। इसलिए शायद एक ही मामले के बारे में दो मसीही एक जैसा फैसला न करें। वे शायद चालचलन और उपासना के मामले में अलग-अलग फैसले करें। गलातियों 6:5 (पढ़िए।) में दिए सिद्धांत को याद रखिए। जब हम इस बात को समझते हैं कि हरेक मसीही अपने फैसले के लिए खुद ज़िम्मेदार है, तब हम दूसरों की आज़ादी का आदर कर पाएँगे।

हम जो फैसला करते हैं वह फैसला हमें दूसरों पर नहीं थोपना चाहिए (पैराग्राफ 15 देखिए)

16, 17. (क) कुरिंथ की मंडली में क्या मसला खड़ा हुआ? (ख) पौलुस ने वहाँ के मसीहियों की कैसे मदद की और इससे हम क्या सीखते हैं?

16 आइए बाइबल में दिए एक उदाहरण पर गौर करें, जो दिखाता है कि हमें क्यों अपने भाइयों की आज़ादी का आदर करना चाहिए। कुरिंथ की मंडली में मसीही इस बात को लेकर आपस में बहस कर रहे थे कि क्या ऐसा गोश्त खाना सही है जो शायद पहले मूर्तियों के आगे चढ़ाया जाता है और बाद में गोश्त-बाज़ार में बेचा जाता है। कुछ मसीहियों का ज़मीर उन्हें इस तरह का गोश्त खाने की इजाज़त देता था क्योंकि वे जानते थे कि मूर्तियाँ कुछ नहीं हैं। जबकि जो मसीही पहले मूर्तियों को पूजते थे उन्हें लगता था कि ऐसा गोश्त खाना, मूर्तिपूजा के बराबर है। (1 कुरिं. 8:4, 7) यह एक गंभीर मसला था जिससे मंडली में फूट पड़ सकती थी। पौलुस ने इस ज़रूरी मसले को सुलझाने में मसीहियों की कैसे मदद की?

17 सबसे पहले, पौलुस ने दोनों समूह के लोगों को याद दिलाया कि हम क्या खाते हैं या क्या नहीं, इसका परमेश्वर के साथ हमारी दोस्ती पर कोई फर्क नहीं पड़ता। (1 कुरिं. 8:8) फिर पौलुस ने उन्हें खबरदार किया कि वे “अपना चुनाव करने का जो हक है” उसका इस्तेमाल कमज़ोर लोगों के ज़मीर को ठेस पहुँचाने के लिए न करें। (1 कुरिं. 8:9) इसके बाद, उसने कमज़ोर ज़मीरवालों से कहा कि वे उन मसीहियों को दोषी न ठहराएँ जो इस तरह का गोश्त खाने का फैसला करते हैं। (1 कुरिं. 10:25, 29, 30) इससे हम क्या सीखते हैं? जब उपासना से जुड़े ज़रूरी मामलों में हर मसीही को अपना फैसला खुद करना है और हमें उस फैसले का आदर करना है, तो क्या रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हमारे भाई-बहन जो छोटे-मोटे फैसले करते हैं हमें उनका भी आदर नहीं करना चाहिए?—1 कुरिं. 10:32, 33.

18. आपको अपने फैसले खुद करने का जो तोहफा मिला है, उसकी आप कैसे कदर कर सकते हैं?

18 यहोवा ने हमें खुद अपने फैसले करने का जो अनमोल तोहफा दिया है, उससे हमें सच्ची आज़ादी मिलती है। (2 कुरिं. 3:17) हम इस तोहफे की कदर करते हैं क्योंकि इसकी वजह से हम फैसले कर पाते हैं और यह दिखा पाते हैं कि हम यहोवा से कितना प्यार करते हैं। तो आइए हम अपने फैसलों से दिखाते रहें कि हम यहोवा का आदर करते हैं। साथ ही, दूसरे जो फैसला लेते हैं उसका भी आदर करें।