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अध्याय सोलह

उसने हिम्मत और बुद्धि से काम लिया

उसने हिम्मत और बुद्धि से काम लिया

1-3. (क) जब एस्तेर अपने पति की राजगद्दी की तरफ बढ़ रही थी तो उसे कैसा लगा होगा? (ख) एस्तेर को देखकर राजा ने क्या किया?

एस्तेर धीरे-धीरे राजगद्दी की तरफ बढ़ रही है। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा है। शूशन के फारसी महल के इस बड़े दरबार में ऐसी खामोशी छायी है कि एस्तेर को अपने ही कदमों की आहट और कपड़ों की सरसराहट सुनायी देती है। एस्तेर के लिए अभी यह देखने का वक्‍त नहीं है कि दरबार का कोना-कोना कितना शानदार है, खंभे कितने खूबसूरत हैं और छत पर, जो दूर लबानोन से लाए देवदारों से बनी है, कितनी सुंदर नक्काशियाँ बनी हैं। इसके बजाय, एस्तेर का पूरा ध्यान उस आदमी पर लगा हुआ है जो राजगद्दी पर बैठा है और उसकी ज़िंदगी का फैसला करनेवाला है।

2 जब एस्तेर राजा की तरफ बढ़ती है तो वह भी ध्यान से उसे देखता है और फिर एस्तेर की तरफ अपना सोने का राजदंड बढ़ाता है। इस एक इशारे से एस्तेर की जान बच जाती है। अपना राजदंड बढ़ाकर राजा जताता है कि एस्तेर ने बिन बुलाए उसके सामने आने की जो गुस्ताखी की है उसे राजा ने माफ कर दिया है। जब एस्तेर राजगद्दी के पास आ जाती है तो वह एहसान-भरे दिल से अपना हाथ बढ़ाकर राजदंड का सिरा छूती है।​—एस्ते. 5:1, 2.

एस्तेर ने नम्रता से ज़ाहिर किया कि वह राजा की दया के लिए एहसानमंद है

3 राजा अहश-वेरोश की शान देखते ही बनती थी। उसके शाही लिबास से दिखता था कि वह कितना ताकतवर और दौलतमंद था। कहा जाता है कि उस ज़माने के फारसी राजाओं की शाही पोशाक की कीमत आज के हिसाब से करोड़ों डॉलरों की थी। इस सबके बावजूद एस्तेर अपने पति की आँखों में अपने लिए प्यार देख सकती थी। राजा सचमुच उसे चाहता था। उसने कहा, “क्या बात है रानी एस्तेर? तुझे क्या चाहिए? अगर तू आधा राज्य भी माँगे, तो वह भी तुझे दे दिया जाएगा।”​—एस्ते. 5:3.

4. एस्तेर के सामने कौन-सी चुनौतियाँ थीं?

4 एस्तेर ने अब तक अपने विश्‍वास और हिम्मत का बढ़िया सबूत दिया था। वह अपने लोगों को साज़िश से बचाने के लिए राजा के पास आयी ताकि वे मिट न जाएँ। अब तक तो उसे कामयाबी मिली, मगर आगे उसे और भी बड़ी-बड़ी चुनौतियों का सामना करना था। उसे इस घमंडी राजा को यकीन दिलाना था कि उसका सबसे भरोसेमंद सलाहकार दुष्ट है और उसने उससे धोखे से एस्तेर के लोगों के लिए मौत का फरमान जारी करवा दिया है। मगर वह राजा को कैसे कायल करती और हम उसके विश्‍वास से क्या सीख सकते हैं?

उसने बोलने का सही समय चुना

5, 6. (क) एस्तेर ने सभोपदेशक 3:1, 7 में दिए सिद्धांत के मुताबिक कैसे काम किया? (ख) एस्तेर ने अपने पति से बात करने के लिए कैसे बुद्धि से काम लिया?

5 क्या एस्तेर पूरे दरबार के सामने राजा को समस्या बताती? अगर वह ऐसा करती तो राजा का अपमान होता और उसके सलाहकार हामान को उसकी बात झुठलाने का मौका मिल जाता। इसलिए एस्तेर ने क्या किया? सदियों पहले बुद्धिमान राजा सुलैमान ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा था, “हर चीज़ का एक समय होता है, . . . चुप रहने का समय और बोलने का समय” होता है। (सभो. 3:1, 7) हम कल्पना कर सकते हैं कि जब एस्तेर छोटी थी तो उसके पिता मोर्दकै ने उसे ऐसे सिद्धांत सिखाए होंगे। इसलिए एस्तेर जानती थी कि सोच-समझकर “बोलने का समय” चुनना कितना ज़रूरी है।

6 एस्तेर ने कहा, “अगर राजा को यह मंज़ूर हो, तो वह आज मेरे यहाँ आए क्योंकि मैंने खास राजा के लिए एक दावत रखी है। और वह अपने साथ हामान को भी लाए।” (एस्ते. 5:4) राजा मान गया और उसने हामान को भी दावत में आने के लिए कहा। क्या आपने गौर किया कि एस्तेर ने कैसे बुद्धिमानी से बात की? उसने अपने पति की इज़्ज़त का ध्यान रखा और उसे अपनी चिंताएँ बताने के लिए एक सही माहौल तैयार किया।​—नीतिवचन 10:19 पढ़िए।

7, 8. (क) एस्तेर की पहली दावत कैसी रही? (ख) उसने राजा से अपनी बात कहने में देरी क्यों की?

7 एस्तेर ने दावत की पूरी तैयारी बड़े ध्यान से की होगी। उसने इस बात का खयाल रखा होगा कि सबकुछ उसके पति की पसंद के मुताबिक हो। उसने बढ़िया दाख-मदिरा का इंतज़ाम किया होगा ताकि उसे पीकर राजा का दिल मगन हो जाए। (भज. 104:15) अहश-वेरोश ने दावत का खूब मज़ा लिया। वह इतना खुश हुआ कि उसने एस्तेर से फिर पूछा कि वह क्या चाहती है। क्या एस्तेर के लिए बोलने का यह सही समय था?

8 एस्तेर को नहीं लगा कि यह सही समय था। इसलिए उसने राजा और हामान को अगले दिन एक और दावत में आने का न्यौता दिया। (एस्ते. 5:7, 8) एस्तेर ने अपनी बात कहने में देरी क्यों की? याद रखिए कि राजा के फरमान की वजह से एस्तेर के सभी लोगों पर मौत का खतरा मँडरा रहा था। इसलिए एस्तेर को पक्का करना था कि बोलने का सबसे सही समय कौन-सा होगा। यही वजह है कि उसने इंतज़ार किया ताकि वह सही मौके पर अपने पति को दिखा सके कि वह उसकी कितनी इज़्ज़त करती है।

9. (क) सब्र का गुण कितना अनमोल है? (ख) हम एस्तेर की तरह कैसे सब्र रख सकते हैं?

9 सब्र एक अनमोल गुण है जो बहुत कम लोगों में होता है। हालाँकि एस्तेर बहुत चिंता में थी और राजा से अपनी बात कहने के लिए बेचैन थी, फिर भी उसने सब्र रखते हुए सही वक्‍त का इंतज़ार किया। हम उसकी मिसाल से बहुत कुछ सीखते हैं, क्योंकि हम सब कभी-कभी कुछ गलत होते देखते हैं और जानते हैं कि उसे ठीक किया जाना चाहिए। अगर हम किसी अधिकारी को कायल करना चाहते हैं कि वह उस समस्या के बारे में कुछ करे, तो हमें एस्तेर की तरह सब्र रखना चाहिए। नीतिवचन 25:15 में लिखा है, “सब्र से काम लेकर सेनापति को कायल किया जा सकता है, कोमल बातें हड्डी को भी तोड़ देती हैं।” अगर हम एस्तेर की तरह सब्र से सही वक्‍त का इंतज़ार करें और कोमलता से बात करें, तो हम ऐसे इंसान को भी पिघला सकते हैं जो हमारा कड़ा विरोधी है। क्या एस्तेर के परमेश्‍वर यहोवा ने उसे सब्र रखने और बुद्धि से काम लेने की वजह से आशीष दी?

सब्र रखने से न्याय का रास्ता खुलता है

10, 11. (क) हामान का मिज़ाज क्यों बदल गया? (ख) उसकी पत्नी और दोस्तों ने उसे क्या सलाह दी?

10 एस्तेर के सब्र रखने से एक-के-बाद-एक ऐसी घटनाएँ घटीं जो हमें हैरत में डाल देती हैं। एस्तेर की पहली दावत से लौटते वक्‍त हामान “बहुत खुश था, वह फूला नहीं समा रहा था,” क्योंकि उसे लगा कि राजा और रानी दूसरों से ज़्यादा उसे पसंद करते हैं। मगर जब वह महल के फाटक से निकल रहा था, तो उसकी नज़र मोर्दकै पर पड़ी और उसने देखा कि वह यहूदी अब भी उसके सामने नहीं झुका। जैसे हमने पिछले अध्याय में देखा, मोर्दकै का इरादा उसकी बेइज़्ज़ती करना नहीं था बल्कि वह अपने ज़मीर और यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते की वजह से ऐसा करने से इनकार कर रहा था। मगर हामान मोर्दकै को देखते ही “गुस्से से भर गया।”​—एस्ते. 5:9.

11 जब हामान ने अपनी पत्नी और दोस्तों को इस अपमान के बारे में बताया तो उन्होंने उसे एक सलाह दी। उन्होंने उसे उकसाया कि वह करीब 72 फुट लंबा काठ खड़ा करवाए और फिर राजा से इजाज़त माँगे कि मोर्दकै को उस पर लटका दिया जाए। हामान को यह बात पसंद आयी और उसने तुरंत एक काठ खड़ा करवाया।​—एस्ते. 5:12-14.

12. (क) राजा ने शाही किताब पढ़कर सुनाने का हुक्म क्यों दिया? (ख) फिर उसे क्या पता चला?

12 इस बीच रात को राजा के साथ एक अजीब बात हुई। बाइबल बताती है, “राजा को नींद नहीं आ रही थी।” इसलिए उसने हुक्म दिया कि उसे शाही किताब पढ़कर सुनायी जाए। किताब में अहश-वेरोश को मार डालने की एक साज़िश के बारे में भी लिखा था जो उसे पढ़कर सुनायी गयी। राजा को याद आया कि जिन्होंने वह साज़िश रची थी वे पकड़े गए और मार डाले गए थे। फिर राजा को अचानक होश आया कि मोर्दकै नाम के जिस आदमी ने उस साज़िश का परदाफाश किया था, उसे क्या इनाम मिला? जब उसने यह सवाल पूछा तो उसे जवाब मिला कि मोर्दकै को कोई इनाम नहीं दिया गया।​—एस्तेर 6:1-3 पढ़िए।

13, 14. (क) हामान का पासा कैसे पलटने लगा? (ख) हामान की पत्नी और दोस्तों ने उससे क्या कहा?

13 राजा खीज उठा और वह उस गलती को ठीक करना चाहता था, इसलिए उसने पूछा कि दरबारियों में से कोई है जो इस मामले में उसकी मदद कर सके। इतने सारे दरबारियों में से कौन मौजूद था? हामान! वह सुबह-सुबह दरबार पहुँच गया था, शायद इसलिए कि वह राजा से मोर्दकै को मार डालने की इजाज़त माँगे। मगर इससे पहले कि वह इजाज़त माँगता, राजा ने उससे पूछा कि जिस आदमी से राजा खुश है उसका कैसे आदर किया जाना चाहिए। हामान को लगा कि राजा उसकी बात कर रहा है। इसलिए उसने सुझाव दिया कि ऐसे आदमी का बढ़-चढ़कर आदर किया जाए: उसे शाही पोशाक पहनायी जाए और एक बड़े हाकिम से कहा जाए कि वह उसे राजा के घोड़े पर बिठाकर पूरे शूशन में घुमाए और ज़ोर-ज़ोर से उसकी तारीफ करे ताकि सब लोग सुनें। ज़रा सोचिए, हामान का चेहरा कैसे फक पड़ गया होगा जब उसे पता चला कि राजा जिस आदमी का आदर करना चाहता है वह मोर्दकै है! और मोर्दकै की तारीफ करने के लिए राजा ने किसे ठहराया? हामान को!​—एस्ते. 6:4-10.

14 हामान को ऐसा काम सौंपा गया जो उसे हरगिज़ पसंद नहीं था। उसने कुड़कुड़ाते हुए यह काम किया और वह बहुत परेशान होकर अपने घर भागा। उसकी पत्नी और दोस्तों ने कहा कि उसने क्या सोचा था और क्या हो गया, यह एक निशानी है कि आगे भी उसके साथ बुरा ही होगा और वह उस यहूदी मोर्दकै से ज़रूर हार जाएगा।​—एस्ते. 6:12, 13.

15. (क) एस्तेर के सब्र का क्या नतीजा निकला? (ख) ‘परमेश्‍वर के वक्‍त का इंतज़ार करना’ क्यों बुद्धिमानी है?

15 जब एस्तेर ने सब्र रखा और राजा से अपनी बात कहने के लिए एक और दिन इंतज़ार किया, तो उस दौरान हामान अपने लिए ही गड्ढा खोदने लगा। और जिस तरह राजा की अचानक नींद उड़ गयी क्या उसके पीछे यहोवा परमेश्‍वर का हाथ नहीं रहा होगा? (नीति. 21:1) इसलिए यह हैरानी की बात नहीं कि बाइबल हमें बढ़ावा देती है कि हम ‘परमेश्‍वर के वक्‍त का इंतज़ार करें।’ (मीका 7:7 पढ़िए।) ऐसा करने से हम पाएँगे कि अपनी समस्याओं के लिए हम जो भी हल सोचते हैं उससे कई गुना बेहतर तरीके से परमेश्‍वर उनका हल करता है।

उसने हिम्मत से बात की

16, 17. (क) एस्तेर के लिए “बोलने का समय” कब आया? (ख) एस्तेर राजा की पहली पत्नी वशती से कैसे अलग थी?

16 एस्तेर नहीं चाहती थी कि राजा के सब्र का बाँध टूट जाए। इसलिए उसने दूसरी दावत में राजा को सबकुछ बताने का फैसला किया। मगर वह यह कैसे करती? खुद राजा ने उसे यह मौका दिया। उसने एक बार फिर एस्तेर से पूछा कि उसकी क्या बिनती है। (एस्ते. 7:2) अब एस्तेर के “बोलने का समय” आ गया।

17 हम कल्पना कर सकते हैं कि एस्तेर ने पहले मन-ही-मन प्रार्थना की होगी और फिर उसने कहा, “अगर राजा मुझसे खुश है और अगर राजा को यह मंज़ूर हो, तो मेरी बस यही बिनती है कि वह मेरी और मेरे लोगों की जान बचा ले।” (एस्ते. 7:3) गौर कीजिए कि उसने राजा को यकीन दिलाया कि वह उसके फैसले की इज़्ज़त करती है। देखा आपने, एस्तेर राजा की पहली पत्नी वशती से कितनी अलग थी जिसने जानबूझकर अपने पति का अपमान किया था! (एस्ते. 1:10-12) इसके अलावा, एस्तेर ने राजा से यह नहीं कहा कि उसने हामान पर भरोसा करके कितनी बेवकूफी की है। उसने बस राजा से मिन्‍नत की कि वह उसकी जान बचाए।

18. एस्तेर ने राजा को अपनी समस्या कैसे बतायी?

18 एस्तेर की यह बिनती सुनकर राजा ज़रूर चौंक गया होगा। किसकी मजाल कि वह रानी को मार डालने की कोशिश करे? एस्तेर ने कहा, “हमें खत्म करने और हमारा वजूद मिटाने के लिए हमें बेच दिया गया है। अगर हमें गुलामी में बेचा जाता तो मैं कुछ न कहती। लेकिन जब हमारे विनाश से खुद राजा को नुकसान होगा तो भला मैं चुप कैसे रह सकती हूँ? इस आफत को रोकना ही होगा।” (एस्ते. 7:4) ध्यान दीजिए कि एस्तेर ने अपनी समस्या के बारे में साफ-साफ बताया। उसने यह भी कहा कि अगर उन्हें सिर्फ गुलामी में बेचने की बात होती तो वह चुप रहती। मगर यह उनकी पूरी-की-पूरी जाति को मिटाने का मसला था जिससे राजा को भारी नुकसान होता, इसलिए वह चुप नहीं रह सकी।

19. एस्तेर से हम दूसरों को कायल करने के बारे में क्या सीखते हैं?

19 एस्तेर से हम दूसरों को कायल करने के हुनर के बारे में बहुत कुछ सीखते हैं। अगर आपको किसी गंभीर समस्या के बारे में अपने किसी अज़ीज़ को या अधिकारी को बताना पड़े तो सब्र रखिए, आदर से पेश आइए और सबकुछ साफ-साफ बताइए।​—नीति. 16:21, 23.

20, 21. (क) एस्तेर ने कैसे हामान का परदाफाश किया और इस पर राजा ने क्या किया? (ख) जब हामान का परदाफाश हो गया तो उसने क्या किया?

20 अहश-वेरोश ने कड़क आवाज़ में पूछा, “किसने ऐसा करने की जुर्रत की? कौन है वह गुस्ताख?” कल्पना कीजिए, एस्तेर कैसे उँगली से इशारा करके कहती है, “हमारे खिलाफ साज़िश रचनेवाला, हमारा दुश्‍मन कोई और नहीं, यह दुष्ट हामान है!” यह सुनते ही हामान का क्या हाल हुआ? उसकी जान सूख गयी! ज़रा सोचिए, राजा का चेहरा कैसे गुस्से से लाल हो गया होगा जब उसे एहसास हुआ कि उसके सबसे भरोसेमंद सलाहकार ने उससे धोखे से ऐसा फरमान जारी करवाया जिससे उसकी प्यारी पत्नी की जान चली जाती! राजा फौरन उठकर बाहर बगीचे में चला गया ताकि खुद पर काबू पा सके।​—एस्ते. 7:5-7.

एस्तेर ने बड़ी हिम्मत से दुष्ट हामान का परदाफाश किया

21 जब हामान का परदाफाश हो गया कि वह छिपकर साज़िश करनेवाला बुज़दिल है, तो वह रानी के पैरों पर गिर गया। फिर जब राजा वापस कमरे में आया और उसने देखा कि हामान एस्तेर से बिनती करते हुए उसके दीवान पर गिरा जा रहा है तो वह और भी भड़क गया। उसने चिल्लाकर हामान से कहा कि वह उसके ही घर में उसकी पत्नी की इज़्ज़त पर हाथ डाल रहा है। अब हामान का मरना तय था। उसका चेहरा कपड़े से ढक दिया गया और उसे बाहर ले जाया गया। फिर राजा के एक अधिकारी ने उसे बताया कि हामान ने मोर्दकै को मार डालने के लिए एक लंबा काठ बनवाया है। अहश-वेरोश ने फौरन हुक्म दिया कि खुद हामान को उस पर लटका दिया जाए।​—एस्ते. 7:8-10.

22. एस्तेर से हम उम्मीद न छोड़ने और विश्‍वास न खोने के बारे में क्या सीखते हैं?

22 आज दुनिया में हर कहीं नाइंसाफी है, इसलिए हम शायद मान बैठें कि इंसाफ कभी नहीं होगा। क्या आपको कभी ऐसा लगा है? एस्तेर ने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी, न ही अपना विश्‍वास खोया। वक्‍त आने पर उसने हिम्मत से बात की और इंसाफ करने की बिनती की और फिर मामला यहोवा के हाथ में छोड़ दिया। आइए हम भी ऐसा ही करें! यहोवा बदला नहीं है। जैसे एस्तेर के दिनों में उसने हामान के साथ किया था, वैसे ही आज भी वह दुष्टों और धूर्त लोगों को उनके अपने ही जाल में फँसा सकता है।​—भजन 7:11-16 पढ़िए।

उसने अपनी परवाह किए बिना यहोवा और उसके लोगों की खातिर काम किया

23. (क) राजा ने मोर्दकै और एस्तेर को क्या इनाम दिया? (ख) बिन्यामीन के बारे में याकूब की भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई? (यह बक्स देखें, “ एक भविष्यवाणी पूरी हुई।”)

23 राजा आखिरकार जान गया कि मोर्दकै कौन है। वह न सिर्फ उसका वफादार सेवक है जिसने उसकी जान साज़िश से बचायी थी बल्कि उसी ने एस्तेर की परवरिश की थी। अहश-वेरोश ने हामान का प्रधानमंत्री का पद मोर्दकै को दे दिया। उसने हामान का घर और उसकी बेशुमार दौलत एस्तेर को दे दी और एस्तेर ने यह सब मोर्दकै के ज़िम्मे सौंप दिया।​—एस्ते. 8:1, 2.

24, 25. (क) हामान का परदाफाश करने के बाद एस्तेर क्यों बेफिक्र नहीं रह सकती थी? (ख) एस्तेर ने कैसे एक बार फिर अपनी जान जोखिम में डाली?

24 अब जब एस्तेर और मोर्दकै के ऊपर से खतरा टल गया तो क्या एस्तेर बेफिक्र बैठी रहती? अगर वह खुदगर्ज़ होती तो शायद ऐसा करती। इस बीच, हामान ने सारे यहूदियों को मार डालने का जो फरमान जारी करवाया था वह साम्राज्य के कोने-कोने तक पहुँचाया जा रहा था। हामान ने यह पता लगाने के लिए कि यह वहशियाना हमला करना कब सही होगा, पूर यानी चिट्ठी डाली थी। इस तरह चिट्ठियाँ डालना शायद एक तरह का जादू-टोना था। (एस्ते. 9:24-26) हालाँकि यहूदियों को मारने के लिए जो दिन तय किया गया था उसमें कुछ महीने बाकी थे, लेकिन वह दिन नज़दीक आ रहा था। क्या इस मुसीबत को रोकने की कोई उम्मीद थी?

25 एस्तेर ने एक बार फिर अपनी जान जोखिम में डाली और बिन बुलाए राजा के सामने गयी। इस बार उसने रो-रोकर राजा से अपने लोगों की जान की भीख माँगी और कहा कि वह उस फरमान को रद्द कर दे। लेकिन फारसी सम्राट के नाम से एक बार जब फरमान जारी हो जाता तो उसे किसी भी हाल में रद्द नहीं किया जा सकता था। (दानि. 6:12, 15) इसलिए राजा ने एस्तेर और मोर्दकै को एक नया फरमान जारी करने का अधिकार दिया और उन्होंने ऐसा ही किया। उस दूसरे फरमान के मुताबिक यहूदियों को अपना बचाव करने का हक मिलता। यह खुशखबरी यहूदियों तक पहुँचाने के लिए घुड़सवार तेज़ी से साम्राज्य के कोने-कोने में गए। इस खबर से यहूदियों के मन में एक उम्मीद जागी। (एस्ते. 8:3-16) कल्पना कीजिए, पूरे साम्राज्य में सभी यहूदी हथियार बाँधकर युद्ध के लिए तैयार हो रहे हैं और यह सब उस नए फरमान की वजह से मुमकिन हुआ है। लेकिन अब एक ज़रूरी सवाल उठता है कि क्या ‘सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा’ इस युद्ध में अपने लोगों का साथ देता?​—1 शमू. 17:45.

एस्तेर और मोर्दकै ने फारसी साम्राज्य के यहूदियों को फरमान भेजा

26, 27. (क) यहोवा ने कैसे अपने लोगों को दुश्‍मनों पर पूरी तरह जीत दिलायी? (ख) हामान के बेटों की मौत से कौन-सी भविष्यवाणी पूरी हुई?

26 आखिरकार वह दिन आ गया। परमेश्‍वर के लोग तैयार थे। फारस के बहुत-से अधिकारी भी उनकी तरफ हो गए क्योंकि यह खबर दूर-दूर तक फैल गयी कि नया प्रधानमंत्री मोर्दकै एक यहूदी है। यहोवा ने अपने लोगों को एक बड़ी जीत दिलायी। उसने इस बात का ध्यान रखा कि उनके दुश्‍मनों का पूरी तरह सफाया कर दिया जाए ताकि वे फिर कभी उसके लोगों पर हमला न करें। *​—एस्ते. 9:1-6.

27 इसके अलावा, दुष्ट हामान के 10 बेटों को भी मार डाला गया क्योंकि जब तक वे ज़िंदा रहते मोर्दकै की जान को खतरा होता और वह हामान के घर का ज़िम्मा नहीं ले पाता। (एस्ते. 9:7-10) उनकी मौत से बाइबल की एक भविष्यवाणी पूरी हुई। परमेश्‍वर ने बहुत पहले बताया था कि अमालेकियों का नामो-निशान मिटा दिया जाएगा, जो उसके लोगों के कट्टर दुश्‍मन थे। (व्यव. 25:17-19) हामान के बेटे उस जाति के बचे हुए आखिरी लोग थे।

28, 29. (क) यहोवा की यह मरज़ी क्यों थी कि एस्तेर और उसके लोग युद्ध करें? (ख) एस्तेर क्यों हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल है?

28 जवान एस्तेर को कितनी भारी ज़िम्मेदारियाँ उठानी पड़ी थीं! जैसे, उसे युद्ध करने और दुश्‍मनों को मिटाने का फरमान जारी करना पड़ा। यह सब उसके लिए आसान नहीं रहा होगा। मगर यहोवा की मरज़ी थी कि उसके लोग नाश से बचाए जाएँ क्योंकि इसराएल राष्ट्र से मसीहा को पैदा होना था जिसका वादा किया गया था। मसीहा से ही सभी इंसानों को एक आशा मिलती! (उत्प. 22:18) आज यहोवा के सेवक इस बात से खुशी पाते हैं कि जब वह मसीहा, यीशु धरती पर आया तो उसने तब से अपने चेलों को युद्ध में हिस्सा लेने से मना किया था।​—मत्ती 26:52.

29 फिर भी मसीही एक और किस्म के युद्ध में हिस्सा लेते हैं। शैतान ने एक तरह से हमारे खिलाफ जंग छेड़ दी है। वह यहोवा पर हमारा विश्‍वास मिटाने के लिए पहले से ज़्यादा हमला कर रहा है। (2 कुरिंथियों 10:3, 4 पढ़िए।) ऐसे में एस्तेर हमारे लिए कितनी बढ़िया मिसाल है! आइए उसकी तरह हम दूसरों को कायल करने में बुद्धि और सब्र से काम लें, हिम्मत दिखाएँ और अपनी जान की परवाह किए बिना परमेश्‍वर के लोगों की खातिर काम करें। तब हम अपने विश्‍वास का सबूत दे रहे होंगे।

^ पैरा. 26 राजा ने यहूदियों को एक और दिन की मोहलत दी ताकि वे अपने दुश्‍मनों पर पूरी तरह जीत हासिल कर सकें। (एस्ते. 9:12-14) आज तक यहूदी हर साल अदार महीने में, जो फरवरी के बीच से मार्च के बीच तक का होता है, इस जीत की याद में एक त्योहार मनाते हैं जिसे पूरीम कहा जाता है। यह नाम उन चिट्ठियों की वजह से पड़ा जो हामान ने इसराएलियों को मिटाने के लिए डाले थे।