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आसा, यहोशापात, हिजकियाह, योशियाह

पूरे दिल से यहोवा की सेवा कीजिए!

पूरे दिल से यहोवा की सेवा कीजिए!

“हे यहोवा, मैं तुझसे बिनती करता हूँ, याद कर कि मैं कैसे तेरा विश्वासयोग्य बना रहा और पूरे दिल से तेरे सामने सही राह पर चलता रहा।”—2 राजा 20:3.

गीत: 52, 32

1-3. “पूरे दिल से” यहोवा की सेवा करने का क्या मतलब है? एक उदाहरण दीजिए।

हममें से कोई भी परिपूर्ण नहीं है। हम सबसे गलतियाँ हो जाती हैं। लेकिन यहोवा का लाख-लाख शुक्रिया कि उसने फिरौती बलिदान का इंतज़ाम किया। जब हम नम्र होकर पश्‍चाताप करते हैं और उससे माफी माँगते हैं, तो वह हमें माफ कर देता है। हम यकीन रख सकते हैं कि वह “हमारे पापों के मुताबिक” हमसे सलूक नहीं करेगा। (भज. 103:10) फिर भी अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी उपासना कबूल करे, तो हमें ‘पूरे दिल से उसकी सेवा’ करनी होगी। (1 इति. 28:9) अपरिपूर्ण होने के बावजूद हम यह कैसे कर सकते हैं?

2 ज़रा राजा आसा और राजा अमज्याह पर ध्यान दीजिए। दोनों राजाओं ने यहोवा की नज़र में सही काम किए थे, लेकिन परिपूर्ण न होने की वजह से उनसे कुछ गलतियाँ भी हुई थीं। फिर भी राजा आसा के बारे में बाइबल में लिखा है कि उसने पूरे दिल से यहोवा की सेवा की। (2 इति. 15:16, 17; 25:1, 2; नीति. 17:3) उसने हमेशा यहोवा का दिल खुश करने की कोशिश की और वह उसकी सेवा में ‘पूरी तरह लगा’ रहा। (1 इति. 28:9, फुटनोट) वहीं राजा अमज्याह ने यहोवा की सेवा “पूरे दिल से” नहीं की। परमेश्वर के दुश्मनों को हराने के बाद वह उनके देवताओं की मूरतें अपने साथ ले आया और उन्हें पूजने लगा।—2 इति. 25:11-16.

3 “पूरे दिल से” यहोवा की सेवा करनेवाला इंसान यहोवा से बहुत प्यार करता है और हमेशा उसकी उपासना करना चाहता है। बाइबल में शब्द “दिल” आम तौर पर यह बताने के लिए इस्तेमाल किया जाता है कि एक व्यक्‍ति अंदर से कैसा है। इसका यह भी मतलब होता है कि वह किस बारे में सोचता है, उसे किन बातों से लगाव है, वह ज़िंदगी में क्या करना चाहता है और वह कोई काम क्यों करता है। पूरे दिल से यहोवा की सेवा करनेवाला इंसान सिर्फ अपना फर्ज़ समझकर सेवा नहीं करता या बस इसलिए नहीं करता कि यह उसकी आदत बन गयी है। वह सच में ऐसा करना चाहता है। हम भी पूरे दिल से यहोवा की सेवा कर सकते हैं, भले ही हम परिपूर्ण नहीं हैं।—2 इति. 19:9.

4. हम किस बारे में गौर करेंगे?

4 “पूरे दिल से” यहोवा की सेवा करने का क्या मतलब है, इसे और अच्छी तरह समझने के लिए आइए राजा आसा और यहूदा के ही तीन और वफादार राजाओं पर गौर करें। वे हैं, यहोशापात, हिजकियाह और योशियाह। हालाँकि इन चार राजाओं ने कुछ गलतियाँ कीं, फिर भी इन्होंने यहोवा का दिल खुश किया। यहोवा की नज़र में वे पूरे दिल से उसकी सेवा कर रहे थे। यह कैसे हो सकता है? इन राजाओं से हम क्या सीख सकते हैं?

आसा का दिल “यहोवा पर पूरी तरह लगा रहा”

5. राजा बनने के बाद आसा ने क्या काम किए?

5 इसराएल राष्ट्र के दो भागों में बँटने के बाद, यहूदा राज्य का तीसरा राजा आसा था। जब वह राजा बना, तब उसने ठान लिया था कि वह अपने राज्य में झूठी उपासना और घिनौने अनैतिक काम बिलकुल नहीं होने देगा। उसने वे मूरतें नाश कर दीं, जिनकी लोग पूजा करते थे और उन आदमियों को देश से निकाल दिया जो मंदिर में अनैतिक काम करते थे। यहाँ तक कि उसने अपनी दादी को राजमाता के पद से हटा दिया, क्योंकि उसने “एक अश्‍लील मूरत खड़ी करवायी थी।” (1 राजा 15:11-13) आसा ने लोगों से भी कहा कि वे “यहोवा की खोज करें और उसके कानून और उसकी आज्ञाओं का पालन करें।” आसा ने हर मुमकिन कोशिश की कि लोग यहोवा की उपासना करें।—2 इति. 14:4.

6. जब इथियोपिया की सेना यहूदा पर हमला करने आयी, तब आसा ने क्या किया?

6 आसा के राज के पहले दस सालों में यहूदा राज्य में कोई युद्ध नहीं हुआ। बाद में इथियोपिया की सेना यहूदा पर हमला करने आयी, जिसमें 10 लाख सैनिक और 300 रथ थे। (2 इति. 14:1, 6, 9, 10) इस मुसीबत की घड़ी में आसा ने क्या किया? उसने यहोवा से प्रार्थना की कि वह उसे युद्ध में जीत दिलाए। उसे पूरा भरोसा था कि यहोवा अपने लोगों को बचा सकता है। (2 इतिहास 14:11 पढ़िए।) पहले भी कई बार यहोवा ने अपने लोगों को उनके दुश्मनों पर जीत दिलायी थी, जबकि राजा उसके वफादार नहीं थे। उसने ऐसा इसलिए किया था, ताकि सब जान लें कि वही सच्चा परमेश्वर है। (1 राजा 20:13, 26-30) लेकिन इस बार यहोवा ने इस वजह से अपने लोगों की मदद की, क्योंकि आसा ने उस पर भरोसा किया था। यहोवा ने आसा की प्रार्थना सुनी और उसे युद्ध में जीत दिलायी। (2 इति. 14:12, 13) बाद में एक बार आसा ने बहुत बड़ी गलती की। उसने यहोवा की मदद लेने के बजाय सीरिया के राजा से मदद ली। (1 राजा 15:16-22) लेकिन यहोवा देख सकता था कि आसा के दिल में उसके लिए प्यार है। उसका दिल “सारी ज़िंदगी यहोवा पर पूरी तरह लगा रहा।” हम आसा से क्या सीख सकते हैं?—1 राजा 15:14.

7, 8. हम आसा से क्या सीख सकते हैं?

7 हम कैसे जान सकते हैं कि हम यहोवा की सेवा में पूरी तरह लगे हुए हैं या नहीं? खुद से पूछिए, ‘क्या मैं तब भी यहोवा की आज्ञा मानूँगा, जब उसे मानना मेरे लिए मुश्किल हो? क्या मैंने ठान लिया है कि मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा, जिससे यहोवा की शुद्ध मंडली पर दाग लगे?’ ज़रा सोचिए कि जब आसा ने अपनी दादी को राजमाता के पद से हटाया, तो उसे कितनी हिम्मत से काम लेना पड़ा होगा। कभी-कभी शायद आपको भी हिम्मत से काम लेना पड़े। जैसे, अगर आपके परिवार का कोई सदस्य या आपका दोस्त पाप करता है और पश्‍चाताप नहीं करता और इस वजह से उसका बहिष्कार कर दिया जाता है, तो आप क्या करेंगे? क्या आप ठान लेंगे कि आप उससे कोई नाता नहीं रखेंगे? आपके मन में क्या आएगा?

8 आसा की तरह आपको भी कई बार लग सकता है कि हर कोई आपके खिलाफ है। शायद आपके साथ पढ़नेवाले बच्चे या आपके शिक्षक आपका मज़ाक उड़ाएँ, क्योंकि आप यहोवा के साक्षी हैं। या फिर आपके साथ काम करनेवाले आपको बेवकूफ समझें, क्योंकि आप अधिवेशन वगैरह के लिए छुट्टी लेते हैं या ज़्यादा पैसा कमाने के लिए अकसर ओवरटाइम नहीं करते। ऐसे में आसा की तरह यहोवा पर भरोसा रखिए। उससे प्रार्थना कीजिए, हिम्मत से काम लीजिए और जो सही है, वह करते रहिए। याद रखिए कि परमेश्वर ने आसा की हिम्मत बँधायी, वह आपकी भी हिम्मत बँधाएगा।

9. प्रचार करके हम यहोवा का दिल कैसे खुश कर सकते हैं?

9 आसा ने न सिर्फ खुद पूरे दिल से यहोवा की सेवा की, बल्कि लोगों को भी बढ़ावा दिया कि वे “यहोवा की खोज करें।” हम भी लोगों को यहोवा की उपासना करने में मदद करते हैं। जब हम लोगों को यहोवा के बारे में बताते हैं, तो वह ध्यान देता है। हम यह इसलिए करते हैं कि हमें यहोवा से प्यार है, लोगों की फिक्र है और हम चाहते हैं कि उनका भविष्य अच्छा हो। यह सब देखकर यहोवा का दिल कितना खुश होता होगा!

यहोशापात यहोवा की खोज करता रहा

10, 11. यहोशापात की तरह हम क्या कर सकते हैं?

10 आसा का बेटा यहोशापात ‘अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलता रहा।’ (2 इति. 20:31, 32) वह कैसे? अपने पिता की तरह उसने लोगों को बढ़ावा दिया कि वे यहोवा की उपासना करते रहें। उसने कुछ आदमियों को यह ज़िम्मेदारी दी कि वे यहूदा के शहरों में जाएँ और लोगों को “यहोवा के कानून की किताब” से सिखाएँ। (2 इति. 17:7-10) यहाँ तक कि वह उत्तर के राज्य में भी गया, एप्रैम के पहाड़ी इलाके में रहनेवाले लोगों के पास, ताकि उन्हें “परमेश्वर यहोवा के पास लौटा ले आए।” (2 इति. 19:4) यहोशापात ऐसा राजा था, “जो पूरे दिल से यहोवा की खोज करता था।”—2 इति. 22:9.

11 आज यहोवा चाहता है कि पूरी दुनिया में लोगों को उसके बारे में सिखाया जाए। इस काम में हम सब भाग ले सकते हैं। क्या आपने यह लक्ष्य रखा है कि आप हर महीने लोगों को परमेश्वर का संदेश देंगे? क्या आप लोगों को बाइबल के बारे में सिखाना चाहते हैं, ताकि वे भी यहोवा की उपासना कर सकें? तो क्यों न इस बारे में यहोवा से प्रार्थना करें? अगर आप मेहनत करें, तो यहोवा आपकी मेहनत पर आशीष देगा और आप बाइबल अध्ययन शुरू कर पाएँगे। अगर किसी को अध्ययन कराने के लिए आपको अपना आराम का समय त्यागना पड़े, क्या तब भी आप उसे अध्ययन कराएँगे? जिस तरह यहोशापात ने सच्ची उपासना दोबारा शुरू करने में लोगों की मदद की, उसी तरह क्या आप उन भाई-बहनों की मदद कर सकते हैं, जो सच्चाई में ठंडे पड़ गए हैं? प्राचीन अपने इलाके में रहनेवाले बहिष्कार किए गए उन लोगों से मिलते हैं और उनकी मदद करते हैं, जिन्होंने शायद अब गलत काम करने छोड़ दिए हैं।

12, 13. (क) जब यहोशापात बहुत डर गया था, तब उसने क्या किया? (ख) यहोशापात की तरह हमें भी क्या करना चाहिए और क्यों?

12 जब एक विशाल सेना यहूदा पर हमला करने आयी, तब यहोशापात ने यहोवा पर भरोसा रखा, जैसे उसके पिता ने किया था। (2 इतिहास 20:2-4 पढ़िए।) यहोशापात बहुत डर गया था। उसने यहोवा से मदद की गुहार लगायी। उसने यहोवा से कहा, “हमारे पास इस विशाल सेना का मुकाबला करने की ताकत नहीं है।” उसने यह भी कहा कि उसे और उसके लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें। यहोशापात को पूरा यकीन था कि यहोवा उनकी मदद करेगा। उसने कहा, “हमारी आँखें तेरी ओर लगी हैं।”—2 इति. 20:12.

13 मुसीबत की घड़ी में शायद हमें भी समझ में न आए कि हम क्या करें। हम शायद बहुत डर जाएँ। (2 कुरिं. 4:8, 9) लेकिन याद कीजिए कि यहोशापात ने क्या किया। उसने सभी लोगों के सामने यहोवा से प्रार्थना की और उसे बताया कि वह और उसके लोग खुद को कितना लाचार महसूस कर रहे हैं। (2 इति. 20:5) आज परिवार के मुखिया यहोशापात से बहुत कुछ सीख सकते हैं। वे यहोवा को अपनी परेशानी बता सकते हैं और उससे बिनती कर सकते हैं कि वह उनके परिवार को उस परेशानी से लड़ने की ताकत दे और उन्हें सही राह दिखाए। अपने परिवार के साथ मिलकर इस तरह प्रार्थना करने से मत हिचकिचाइए। इससे वे देख पाएँगे कि आपको यहोवा पर कितना भरोसा है। यहोवा ने यहोशापात की मदद की थी, वह आपकी भी मदद करेगा!

हिजकियाह सही काम करता रहा

14, 15. हिजकियाह ने कैसे दिखाया कि उसे यहोवा पर पूरा भरोसा है?

14 राजा हिजकियाह भी “हमेशा यहोवा से लिपटा रहा।” उसका पिता बहुत बुरा था, वह मूरतों की उपासना करता था, इसके बावजूद हिजकियाह ने यहोवा की उपासना की। उसने “ऊँची जगह हटायीं, पूजा-स्तंभ चूर-चूर कर दिए और पूजा-लाठ काट डाली। उसने ताँबे का वह साँप भी चूर-चूर कर दिया जो मूसा ने बनवाया था,” क्योंकि इसराएली उसे पूजने लगे थे। हिजकियाह पूरे दिल से यहोवा की सेवा में लगा रहा। “वह उन आज्ञाओं को मानता रहा जो यहोवा ने मूसा को दी थीं।”—2 राजा 18:1-6.

15 हिजकियाह के राज में ताकतवर अश्शूरी सेना यहूदा पर हमला करने आयी और उसने यरूशलेम को नाश करने की धमकी दी। अश्शूर के राजा सनहेरीब ने यहोवा का मज़ाक उड़ाया और यह कोशिश की कि हिजकियाह उसके आगे घुटने टेक दे। उस मुश्किल वक्‍त में हिजकियाह ने यहोवा पर पूरा भरोसा रखा और मदद के लिए उससे बिनती की। वह जानता था कि यहोवा अश्शूरी सेना से कहीं ज़्यादा ताकतवर है और वह अपने लोगों को बचा सकता है। (यशायाह 37:15-20 पढ़िए।) परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुनकर एक स्वर्गदूत भेजा, जिसने 1,85,000 अश्शूरी सैनिकों को मार गिराया।—यशा. 37:36, 37.

16, 17. हम हिजकियाह से क्या सीख सकते हैं?

16 एक वक्‍त ऐसा आया कि हिजकियाह बहुत बीमार हो गया, वह मरने पर था। इस मुश्किल हालात में उसने यहोवा से बिनती की कि वह वफादारी से की गयी उसकी सेवा याद करे और उसकी मदद करे। (2 राजा 20:1-3 पढ़िए।) यहोवा ने हिजकियाह की बिनती सुनी और उसे ठीक कर दिया। माना कि आज हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि परमेश्वर कोई चमत्कार करके हमारी बीमारी ठीक कर दे या हमारी ज़िंदगी बढ़ा दे। मगर हिजकियाह की तरह हम यह भरोसा ज़रूर रख सकते हैं कि यहोवा हमारी मदद करेगा। हम उससे कह सकते हैं, “हे यहोवा, मैं तुझसे बिनती करता हूँ, याद कर कि मैं कैसे तेरा विश्वासयोग्य बना रहा और पूरे दिल से तेरे सामने सही राह पर चलता रहा।” क्या आपको यकीन है कि यहोवा हमेशा आपका खयाल रखेगा, बीमारी के वक्‍त भी?—भज. 41:3.

17 हम हिजकियाह की ज़िंदगी से और क्या सीख सकते हैं? हिजकियाह ने देश से मूर्तिपूजा को खत्म करने के लिए कदम उठाया। अगर हमारी ज़िंदगी में कोई बात यहोवा के साथ हमारे रिश्ते को कमज़ोर कर रही है या उसकी उपासना करने में हमारे आड़े आ रही है, तो हमें भी उसे निकाल फेंकना चाहिए। हम दुनिया के लोगों की तरह नहीं बनना चाहते। आज बहुत-से लोग इंसानों को ईश्वर का दर्जा देते हैं। वे नामी-गिरामी हस्तियों को कुछ ज़्यादा ही अहमियत देते हैं, जबकि वे उन्हें जानते भी नहीं। उनके बारे में पढ़ने में और उनकी तसवीरें देखने में घंटों बिताते हैं। या वे अकसर इंटरनेट पर अलग-अलग तरीकों से लोगों से बातचीत करते हैं। बेशक हम अपने परिवार या दोस्तों से इस तरह इंटरनेट के ज़रिए संपर्क कर सकते हैं। लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम सोशल मीडिया पर बहुत सारा वक्‍त बरबाद न कर दें। यह भी हो सकता है कि जब इंटरनेट पर डाली गयी हमारी फोटो की या हमने जो लिखा है, उसकी बहुत-से लोग तारीफ करते हैं, तो शायद हम घमंड करने लगें। या फिर जब हमें पता चलता है कि लोगों ने उसे देखना बंद कर दिया है, तो शायद हम बुरा मान बैठें। ज़रा प्रेषित पौलुस और अक्विला और प्रिस्किल्ला पर ध्यान दीजिए। बाइबल में लिखा है कि पौलुस “ज़ोर-शोर से वचन का प्रचार” करता था। अक्विला और प्रिस्किल्ला लोगों को “परमेश्वर की राह के बारे में सही जानकारी” देने और उसे अच्छी तरह समझाने में वक्‍त बिताते थे। (प्रेषि. 18:4, 5, 26) सोचिए अगर वे आज होते, तो क्या वे हर दिन इंटरनेट पर अपनी नयी-नयी फोटो डालते या उन लोगों की छोटी-छोटी बातें जानने में वक्‍त बिताते, जो यहोवा की सेवा नहीं करते? तो फिर खुद से पूछिए, ‘क्या मैं इंसानों को इतनी अहमियत देता हूँ, मानो वे ईश्वर हों? क्या मैं गैर-ज़रूरी कामों में बहुत ज़्यादा वक्‍त बिताता हूँ?’—इफिसियों 5:15, 16 पढ़िए।

योशियाह ने यहोवा की आज्ञाएँ मानीं

18, 19. योशियाह की तरह हम क्या कर सकते हैं?

18 राजा योशियाह भी “पूरे दिल” से यहोवा की आज्ञाएँ मानता था। (2 इति. 34:31) योशियाह हिजकियाह का परपोता था। जब वह नौजवान ही था, तभी से वह “दाविद के परमेश्वर की खोज करने लगा।” फिर 20 साल की उम्र में उसने यहूदा से मूर्तिपूजा खत्म करना शुरू कर दिया। (2 इतिहास 34:1-3 पढ़िए।) योशियाह ने यहूदा के कई राजाओं से बढ़कर यहोवा को खुश करने की कोशिश की। एक दिन महायाजक को मंदिर में परमेश्वर के कानून की किताब मिली। यह शायद वही किताब थी, जो खुद मूसा ने लिखी थी! जब राज-सचिव ने वह किताब योशियाह को पढ़कर सुनायी, तो उसे पता चला कि पूरी तरह से यहोवा की सेवा करने के लिए उसे कुछ और भी करना होगा। उसने लोगों को भी यहोवा की सेवा करने का बढ़ावा दिया। इस वजह से जब तक योशियाह जीवित रहा, तब तक लोग “परमेश्वर यहोवा के पीछे चलने से नहीं हटे।”—2 इति. 34:27, 33.

19 योशियाह से आज नौजवान क्या सीख सकते हैं? यही कि वे यहोवा को और अच्छी तरह जानें। योशियाह ने अपने दादा मनश्शे से सीखा होगा कि यहोवा पश्‍चाताप करनेवालों की गलतियाँ माफ कर देता है। आप भी अपने परिवार में और मंडली में बुज़ुर्गों से सीख सकते हैं। वे आपको बता सकते हैं कि यहोवा ने उनके लिए किस तरह भलाई के काम किए हैं। यह भी याद कीजिए कि परमेश्वर की किताब में जो लिखा था, उसे सुनकर योशियाह को कैसा लगा। वह यहोवा को खुश करना चाहता था और इसके लिए उसने फौरन बदलाव किए। बाइबल पढ़ने से आपका भी यहोवा की आज्ञा मानने का इरादा और मज़बूत हो सकता है। यहोवा के साथ आपकी दोस्ती और पक्की हो जाएगी और आपकी खुशी बढ़ जाएगी। फिर आप दूसरों को भी यहोवा के बारे में बताना चाहेंगे। (2 इतिहास 34:18, 19 पढ़िए।) जब आप बाइबल का अध्ययन करेंगे, तो शायद आपको यह भी लगे कि यहोवा की सेवा और अच्छी तरह करने के लिए आपको कुछ बदलाव करने हैं। तो फिर योशियाह की तरह ये बदलाव करने की पूरी कोशिश कीजिए।

पूरे दिल से यहोवा की सेवा कीजिए!

20, 21. (क) हमने जिन चार राजाओं की चर्चा की, उन सबमें कौन-सी बात एक जैसी थी? (ख) अगले लेख में हम क्या देखेंगे?

20 हमने यहूदा के जिन चार राजाओं की चर्चा की, उन्होंने पूरे दिल से यहोवा की सेवा की। उनसे हम क्या सीख सकते हैं? उन्होंने ठान लिया था कि वे यहोवा को खुश करेंगे और पूरी ज़िंदगी उसकी उपासना करेंगे। जब ताकतवर दुश्मन उन पर हमला करने आए, तो उन्होंने यहोवा पर भरोसा रखा। सबसे बड़ी बात, उन्होंने यहोवा से प्यार होने की वजह से उसकी सेवा की।

21 ये राजा परिपूर्ण नहीं थे, इनसे गलतियाँ हुईं, फिर भी यहोवा उनसे खुश था। यहोवा देख सकता था कि वे पूरे दिल से उसकी सेवा कर रहे हैं। हम भी परिपूर्ण नहीं हैं और हमसे भी गलतियाँ हो जाती हैं। लेकिन जब यहोवा देखता है कि हम पूरे दिल से उसकी सेवा कर रहे हैं, तो वह खुश होता है। अगले लेख में हम देखेंगे कि इन राजाओं ने जो गलतियाँ कीं, उनसे हम क्या सबक सीख सकते हैं।