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जिनका आदर करना चाहिए, उनका आदर कीजिए

जिनका आदर करना चाहिए, उनका आदर कीजिए

“परमेश्वर जो राजगद्दी पर बैठा है उसका और मेम्ने का गुणगान हो और आदर, महिमा और शक्‍ति हमेशा-हमेशा के लिए उन्हीं की हो।”—प्रका. 5:13.

गीत: 9, 14

1. कुछ लोगों का आदर क्यों किया जाता है? इस लेख में हम क्या गौर करेंगे?

किसी का आदर करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है, उस पर खास ध्यान देना और उसका सम्मान करना। आम तौर पर हम उनका आदर करते हैं, जिन्होंने कुछ खास काम किया है या फिर जिनके पास कोई ओहदा या खास ज़िम्मेदारी है। इस लेख में हम गौर करेंगे कि हमें किनका आदर करना चाहिए और क्यों।

2, 3. (क) यहोवा खास आदर पाने के योग्य क्यों है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) प्रकाशितवाक्य 5:13 में बताया गया ‘मेम्ना’ कौन है? (ग) वह आदर पाने के योग्य क्यों है?

2 प्रकाशितवाक्य 5:13 से पता चलता है कि ‘राजगद्दी पर बैठा परमेश्वर’ और ‘मेम्ना’ आदर पाने के योग्य हैं। प्रकाशितवाक्य अध्याय 4 में स्वर्ग के प्राणी एक वजह बताते हैं कि क्यों यहोवा “जो सदा तक जीवित रहता है” आदर पाने के योग्य है। वे कहते हैं, “हे यहोवा, हमारे परमेश्वर, तू महिमा, आदर और शक्‍ति पाने के योग्य है क्योंकि तू ही ने सारी चीज़ें रची हैं और तेरी ही मरज़ी से ये वजूद में आयीं और रची गयीं।”—प्रका. 4:9-11.

3 प्रकाशितवाक्य 5:13 में बताया गया ‘मेम्ना’ यीशु मसीह है। यह हम कैसे जानते हैं? जब यीशु धरती पर था, तब उसे “परमेश्वर का मेम्ना” कहा गया, जो “दुनिया का पाप दूर ले जाता है!” (यूह. 1:29) बाइबल में लिखा है कि आज तक जितने भी राजा हुए हैं, उन सबसे यीशु कहीं महान है! वह “धन्य और एकमात्र शक्‍तिमान सम्राट, राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है।” (1 तीमु. 6:14-16) आज तक क्या कोई ऐसा राजा हुआ है, जिसने यीशु की तरह अपनी प्रजा के लिए खुशी-खुशी जान दी हो? यह एक ठोस वजह है कि क्यों हमें यीशु का आदर करना चाहिए। यह जानकर क्या आपका दिल नहीं करता कि आप भी स्वर्ग के प्राणियों के सुर में सुर मिलाकर कहें, “यह मेम्ना जो बलि किया गया था, शक्‍ति, दौलत, बुद्धि, ताकत, आदर, महिमा और आशीष पाने के योग्य है”?—प्रका. 5:12.

4. यहोवा और मसीह का आदर करने में हमारी भलाई क्यों है?

4 यूहन्ना 5:22, 23 में बताया गया है कि यहोवा ने मसीह को सभी इंसानों का न्याय करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है। यह एक और वजह है कि क्यों हमें यीशु का आदर करना चाहिए। यीशु का आदर करने से हम यहोवा का भी आदर करते हैं। यीशु और उसके पिता का आदर करने से ही हमें हमेशा की ज़िंदगी मिल सकती है।—भजन 2:11, 12 पढ़िए।

5. सभी इंसान कुछ हद तक आदर और सम्मान पाने के योग्य क्यों हैं?

5 इंसानों को ‘परमेश्वर की छवि’ में बनाया गया है। (उत्प. 1:27) इसका मतलब, ज़्यादातर इंसान कुछ हद तक परमेश्वर के गुण दर्शाते हैं। जैसे प्यार, कृपा और करुणा। इंसानों को ज़मीर भी दिया गया है यानी उनमें यह काबिलीयत है कि वे भले-बुरे और सही-गलत के बीच फर्क कर सकते हैं। (रोमि. 2:14, 15) ज़्यादातर लोग साफ-सुथरी और सुंदर चीज़ें पसंद करते हैं और वे दूसरों के साथ शांति से रहना चाहते हैं। इसकी वजह यह है कि यहोवा सबकुछ कायदे से करता है और वह शांति का परमेश्वर है। भले ही लोगों को एहसास न हो, पर कुछ हद तक सभी इंसान यहोवा के जैसे गुण ज़ाहिर करते हैं। इस वजह से वे भी आदर और सम्मान पाने के योग्य हैं।—भज. 8:5.

सही तरह से आदर कीजिए

6, 7. इंसानों का आदर करने के मामले में यहोवा के साक्षी किस तरह बाकी लोगों से अलग हैं?

6 हम यह तो जान गए कि हमें इंसानों का आदर करना चाहिए। लेकिन शायद हम यह समझ न पाएँ कि हमें उनका किस तरह और किस हद तक आदर करना चाहिए। आज ज़्यादातर पापी इंसान वही करते हैं, जिसका शैतान की दुनिया बढ़ावा देती है। इस वजह से कई लोग इंसानों का हद-से-ज़्यादा आदर-सम्मान करने लगते हैं, वे उन्हें ईश्वर का दर्जा देने लगते हैं। वे बड़े-बड़े राजनेताओं, धर्म-गुरुओं, खिलाड़ियों, फिल्मी सितारों और दूसरी नामी-गिरामी हस्तियों को अपना आदर्श मानने लगते हैं। वे उनके जैसे कपड़े पहनने लगते हैं, उनका चालचलन और उनके तौर-तरीके अपनाने लगते हैं।

7 यहोवा के साक्षी किसी भी इंसान को हद-से-ज़्यादा आदरमान नहीं देते। रही बात किसी को आदर्श बनाने की, तो यीशु से बढ़िया आदर्श कोई नहीं हो सकता। (1 पत. 2:21) साथ ही, हमें याद रखना चाहिए कि सभी इंसानों ने “पाप किया है और वे परमेश्वर के शानदार गुण दिखाने में नाकाम रहे हैं।” (रोमि. 3:23) इस वजह से कोई भी इंसान इस योग्य नहीं कि उसकी उपासना की जाए। यहोवा इस बात से बिलकुल खुश नहीं होता कि हम इंसानों का हद-से-ज़्यादा आदर करें।

8, 9. (क) यहोवा के साक्षी सरकारी अधिकारियों के बारे में क्या सोचते हैं? (ख) हम कब सरकारी अधिकारियों की बात नहीं मानते?

8 कई लोग अपने ओहदे की वजह से आदर-सम्मान पाने के योग्य होते हैं। सरकारी अधिकारियों की बात लीजिए। वे हमारे लिए काफी कुछ करते हैं। देश के नागरिकों की सुरक्षा का खयाल रखते हैं, उनकी ज़रूरतें पूरी करते हैं और दूसरे कई काम करते हैं, जिनसे सबको फायदा होता है। प्रेषित पौलुस ने ठीक ही कहा कि हमें इन लोगों को ‘ऊँचे अधिकारी’ मानकर इनके अधीन रहना चाहिए और इनके बनाए कानून मानने चाहिए। उसने यह भी कहा, “जिसका जो हक बनता है वह उसे दो। जो कर की माँग करता है उसे कर चुकाओ” और “जिसे आदर देना चाहिए उसे आदर दो।”—रोमि. 13:1, 7.

9 यहोवा के साक्षी होने के नाते हमारी पूरी कोशिश रहती है कि हम सरकारी अधिकारियों का आदर करें। हाँ यह तो है कि हर देश के दस्तूर अलग-अलग होते हैं। इस कारण अलग-अलग जगहों पर आदर करने के अलग-अलग तरीके हो सकते हैं। फिर भी हम सरकारी अधिकारियों को पूरा-पूरा सहयोग देते हैं। लेकिन जब वे हमसे कुछ ऐसा करने के लिए कहते हैं, जो यहोवा के स्तरों के खिलाफ है, तो हम उनकी बात नहीं मानते। ऐसे में हम इंसानों के बजाय यहोवा की आज्ञा मानते हैं और उसका आदर करते हैं।—1 पतरस 2:13-17 पढ़िए।

10. बीते ज़माने के यहोवा के सेवक किस तरह हमारे लिए अच्छी मिसाल हैं?

10 बीते ज़माने में भी यहोवा के सेवकों ने सरकारों और सरकारी अधिकारियों का आदर किया। हम उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं। यूसुफ और मरियम पर गौर कीजिए। जब रोमी हुकूमत यह पता लगाना चाहती थी कि उसके साम्राज्य में कितनी आबादी है, तो यूसुफ और मरियम अपना नाम लिखवाने बेतलेहेम गए, जबकि मरियम के पहले बच्चे का जन्म बस होने ही वाला था। (लूका 2:1-5) प्रेषित पौलुस भी अधिकारियों का आदर करने में अच्छी मिसाल था। जब उस पर झूठा इलज़ाम लगाया गया, तो उसने राजा हेरोदेस अग्रिप्पा के सामने और यहूदिया के रोमी राज्यपाल फेस्तुस के सामने अदब से अपनी सफाई दी।—प्रेषि. 25:1-12; 26:1-3.

11, 12. (क) हम धर्म-गुरुओं का खास आदर क्यों नहीं करते? (ख) जब ऑस्ट्रिया का एक साक्षी एक नेता के साथ अदब से पेश आया, तो क्या अच्छा नतीजा हुआ?

11 धर्म-गुरुओं के बारे में क्या कहेंगे? क्या उनका हमें खास आदर करना चाहिए? नहीं। हम उनका उतना ही आदर करते हैं, जितना दूसरे इंसानों का। भले ही धर्म-गुरु हमसे खास आदर पाने की उम्मीद करें, पर ऐसा करना सही नहीं होगा। क्यों? क्योंकि झूठे धर्म के लोग परमेश्वर के बारे में सच्चाई नहीं सिखाते और बाइबल की शिक्षाएँ तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं। यीशु ने तो धर्म-गुरुओं को धिक्कारा और उन्हें कपटी और अंधे अगुवे कहा। (मत्ती 23:23, 24) दूसरी तरफ सरकारी अधिकारियों को थोड़ी ज़्यादा इज़्ज़त देना गलत नहीं होगा। दरअसल ऐसा करने की वजह से कई बार उन्होंने हमारी मदद की है।

12 ऐसी ही एक घटना पर ध्यान दीजिए। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ऑस्ट्रिया के एक नेता डॉक्टर हाइनरिक ग्लाइस्ना को नात्सी सरकार ने गिरफ्तार कर लिया। जब वे ट्रेन से यातना शिविर जा रहे थे, तो उनकी मुलाकात ऑस्ट्रिया के रहनेवाले एक जोशीले साक्षी लेओपोल्ट इंग्लाइट्‌ना से हुई। इस भाई ने डॉ. ग्लाइस्ना को अदब से अपने विश्वास के बारे में बताया और डॉक्टर ने ध्यान से भाई की बातें सुनीं। डॉ. ग्लाइस्ना का काफी रुतबा था। इस वजह से युद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने कई बार ऑस्ट्रिया के साक्षियों की मदद की। शायद आप भी कुछ किस्से जानते होंगे, जिनमें आदर करने की वजह से सरकारी अधिकारियों ने मसीहियों की मदद की।

भाई-बहनों का आदर कीजिए

13. खासकर कौन आदर-सम्मान पाने के योग्य हैं और क्यों?

13 हमारे भाई-बहन भी आदर पाने के हकदार हैं। खासकर वे भाई जो अगुवाई करते हैं, जैसे प्राचीन, सर्किट निगरान, शाखा-समिति और शासी निकाय के सदस्य। (1 तीमुथियुस 5:17 पढ़िए।) ये सभी भाई परमेश्वर के लोगों की देखभाल करते हैं। बाइबल में परमेश्वर के इन सेवकों को “आदमियों के रूप में तोहफे” कहा गया है। (इफि. 4:8) इस वजह से हमें इनका आदर करना चाहिए, फिर चाहे वे किसी भी देश से हों, उनकी पढ़ाई-लिखाई जो भी हो, वे अमीर हों या गरीब या फिर समाज में उनका दर्जा जो भी हो। इस मामले में पहली सदी के मसीही हमारे लिए अच्छी मिसाल हैं। वे अगुवाई लेनेवाले भाइयों का आदर करते थे और आज हम भी ऐसा करते हैं। लेकिन हम इन भाइयों के साथ इस तरह पेश नहीं आते मानो वे स्वर्ग से उतरे हों। वे कड़ी मेहनत करते हैं और नम्रता से पेश आते हैं, इसलिए हम इनका आदर करते हैं।—2 कुरिंथियों 1:24; प्रकाशितवाक्य 19:10 पढ़िए।

14, 15. मसीही प्राचीन बहुत-से धर्म-गुरुओं से कैसे अलग हैं?

14 ये प्राचीन नम्र चरवाहों की तरह होते हैं। वे नहीं चाहते कि भाई-बहन उनके साथ ऐसे पेश आएँ मानो वे नामी-गिरामी हस्ती हों। वे आज के और यीशु के ज़माने के बहुत-से धर्म-गुरुओं से काफी अलग हैं। यीशु ने धर्म-गुरुओं के बारे में कहा, “उन्हें शाम की दावतों में सबसे खास जगह लेना और सभा-घरों में सबसे आगे की जगहों पर बैठना पसंद है। उन्हें बाज़ारों में लोगों से नमस्कार सुनना . . . अच्छा लगता है।”—मत्ती 23:6, 7.

15 मसीही प्राचीन यीशु की यह सलाह मानते हैं, “तुम गुरु न कहलाना क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है जबकि तुम सब भाई हो। और धरती पर किसी को अपना ‘पिता’ न कहना क्योंकि तुम्हारा एक ही पिता है जो स्वर्ग में है। न ही तुम ‘नेता’ कहलाना क्योंकि तुम्हारा एक ही नेता या अगुवा है, मसीह। मगर तुम्हारे बीच जो सबसे बड़ा है, वह तुम्हारा सेवक बने। जो कोई खुद को बड़ा बनाता है, उसे छोटा किया जाएगा और जो कोई खुद को छोटा बनाता है उसे बड़ा किया जाएगा।” (मत्ती 23:8-12) पूरी दुनिया में प्राचीन नम्रता से यीशु की यह बात मानते हैं। इस वजह से भाई-बहन उनसे प्यार करते हैं और उनका आदर-सम्मान करते हैं।

जब प्राचीन नम्रता से यीशु की बात मानते हैं, तो भाई-बहन उनसे प्यार करते हैं और उनका आदर-सम्मान करते हैं (पैराग्राफ 13-15 देखिए)

16. हमें लोगों का आदर करने में क्यों मेहनत करते रहना चाहिए?

16 हमें किस तरह लोगों का आदर करना चाहिए, यह सीखने में वक्‍त लग सकता है। पहली सदी के मसीहियों को भी इसमें वक्‍त लगा था। (प्रेषि. 10:22-26; 3 यूह. 9, 10) लेकिन इसके लिए आप जो मेहनत करते हैं, वह बहुत मायने रखती है। जब हम उस तरह लोगों का आदर करते हैं, जैसे यहोवा चाहता है, तो हमें बहुत-से फायदे होते हैं।

आदर करने के फायदे

17. जिनके पास कोई अधिकार है, उनका आदर करने से क्या फायदे होते हैं?

17 जब हम अपने इलाके में उन लोगों का आदर-सम्मान करते हैं, जिनके पास कोई अधिकार होता है, तो हम आसानी से प्रचार काम कर पाते हैं। वे इसमें कोई रुकावट नहीं डालते। शायद वे हमारे प्रचार काम की तारीफ भी करें। कई सालों पहले जर्मनी में कुछ ऐसा ही हुआ। एक पायनियर बहन बीर्गिट अपनी बेटी के स्कूल के एक कार्यक्रम में गयी। वहाँ शिक्षकों ने बहन से कहा कि यह उनके लिए खुशी की बात है कि इतने सालों से उनकी क्लास में साक्षियों के बच्चे पढ़ते हैं। अगर उनके स्कूल में ये बच्चे न होते, तो वहाँ इतना अच्छा माहौल नहीं होता। बहन बीर्गिट ने उनसे कहा, “हम अपने बच्चों को सिखाते हैं कि उनका व्यवहार ऐसा होना चाहिए, जो परमेश्वर को पसंद आए और उन्हें अपने शिक्षकों का आदर-सम्मान भी करना चाहिए।” एक शिक्षक ने कहा कि अगर सभी बच्चे साक्षियों के बच्चों की तरह होते, तो उन्हें पढ़ाना कितना आसान होता। इन शिक्षकों को साक्षियों के बच्चों का व्यवहार इतना अच्छा लगा कि कुछ हफ्तों बाद उनमें से एक हमारे अधिवेशन में भी आयी।

18, 19. प्राचीनों का आदर करने के मामले में हमें क्या याद रखना चाहिए?

18 बाइबल में दिए सिद्धांतों से हम समझ सकते हैं कि हमें प्राचीनों का कैसे आदर करना चाहिए। (इब्रानियों 13:7, 17 पढ़िए।) वे जो मेहनत करते हैं, उसके लिए हमें उनकी तारीफ करनी चाहिए। हमें उनकी हिदायतें माननी चाहिए, ताकि वे खुशी-खुशी अपनी ज़िम्मेदारी निभा सकें। बाइबल में यह भी लिखा है कि हमें उनके विश्वास की मिसाल पर चलना चाहिए। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम किसी एक प्राचीन की तरह कपड़े पहनें, बात करें या सिखाएँ। ऐसा करके तो हम यीशु के बजाय, इंसानों के नक्शे-कदम पर चल रहे होंगे। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्राचीन भी हमारी तरह अपरिपूर्ण हैं।

19 जब हम प्राचीनों का आदर-सम्मान करते हैं और उनके साथ ऐसे पेश नहीं आते मानो वे नामी-गिरामी हस्ती हों, तो इससे उन्हें फायदा होता है। कैसे? वे नम्र रह पाते हैं और उन्हें यह नहीं लगता कि वे दूसरों से बेहतर हैं या वे जो करते हैं, वह हमेशा सही होता है।

20. जब हम दूसरों का आदर करते हैं, तो हमें किस तरह फायदा होता है?

20 सही तरह से लोगों का आदर करने से हमें भी फायदे होते हैं। वह कैसे? हम स्वार्थी नहीं बनते और मान-सम्मान मिलने पर नम्र रहते हैं। हम यहोवा के संगठन के वफादार रह पाते हैं। संगठन यह बढ़ावा नहीं देता कि हम किसी इंसान का हद-से-ज़्यादा आदर करें, फिर चाहे वह हमारा भाई हो या कोई और। इस वजह से हम उस समय ठोकर नहीं खाते, जब कोई भाई-बहन जिसकी हम इज़्ज़त करते हैं, कुछ ऐसा करता है, जो हमें ठीक नहीं लगता।

21. लोगों का आदर करने का सबसे बड़ा फायदा क्या है?

21 लोगों का आदर करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे हम परमेश्वर का दिल खुश करते हैं। ऐसा करके हम उसकी मरज़ी पूरी करते हैं और उसके वफादार बने रहते हैं। इससे यहोवा शैतान को मुँह-तोड़ जवाब दे पाता है, जिसने कहा कि कोई भी इंसान यहोवा का वफादार नहीं रहेगा। (नीति. 27:11) दुनिया के ज़्यादातर इंसान नहीं जानते कि लोगों का आदर करने का सही तरीका क्या है। लेकिन हम जानते हैं कि हमें लोगों का उस तरह आदर कैसे करना चाहिए, जैसे यहोवा चाहता है! क्या इस बात के लिए हम यहोवा के एहसानमंद नहीं?