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क्या हम बीते समय के राजाओं से सबक सीखेंगे?

क्या हम बीते समय के राजाओं से सबक सीखेंगे?

“ये बातें . . . हमारी चेतावनी के लिए लिखी गयी थीं जो दुनिया की व्यवस्थाओं के आखिरी वक्‍त में जी रहे हैं।”—1 कुरिं. 10:11.

गीत: 11, 29

1, 2. हम यहूदा के चार राजाओं के बारे में क्यों चर्चा करेंगे?

अगर आप देखते हैं कि रास्ते पर एक आदमी फिसलकर गिर पड़ता है, तो ज़ाहिर है कि जब आप उस रास्ते से निकलेंगे, तो थोड़ा सावधान रहेंगे। उसी तरह अगर हम उन लोगों पर ध्यान दें, जिन्होंने ज़िंदगी में कुछ गलतियाँ कीं, तो हम उनके जैसी गलतियाँ करने से बच सकते हैं। आइए देखें कि हम बाइबल में बताए गए लोगों की गलतियों से क्या सबक सीख सकते हैं।

2 पिछले लेख में हमने जिन चार राजाओं की चर्चा की, उन्होंने पूरे दिल से यहोवा की सेवा की। लेकिन उन्होंने बड़ी-बड़ी गलतियाँ भी कीं। उनकी ज़िंदगी की घटनाएँ बाइबल में हमारे फायदे के लिए लिखी गयीं, ताकि हम उन पर मनन करें और उनसे अहम सबक सीखें। उनकी गलतियों से हम क्या सबक सीख सकते हैं? हम उनके जैसी गलतियाँ करने से कैसे बच सकते हैं?—रोमियों 15:4 पढ़िए।

इंसानों की बुद्धि पर भरोसा करना मुसीबत को दावत देना है

3-5. (क) आसा पूरे दिल से यहोवा की सेवा कर रहा था, फिर भी उसने कौन-सी गलती की? (ख) जब बाशा ने यहूदा पर हमला बोला, तो शायद किस वजह से आसा ने इंसानों पर भरोसा किया?

3 आइए पहले आसा पर ध्यान दें। जब इथियोपिया के 10 लाख सैनिक यहूदा पर हमला करने आए, तब आसा ने यहोवा पर भरोसा रखा। लेकिन जब इसराएल के राजा बाशा ने यहूदा पर हमला बोला, तो आसा ने यहोवा पर भरोसा नहीं किया। वह चाहता था कि बाशा रामाह शहर को मज़बूत करने का काम बंद कर दे। रामाह दरअसल इसराएल का एक खास शहर था, जो यहूदा राज्य की सरहद के पास था। (2 इति. 16:1-3) आसा ने सोचा कि इस वक्‍त सीरिया के राजा को रिश्वत देकर उसकी मदद लेना अच्छा होगा। सीरिया के लोगों ने इसराएल के शहरों पर हमला बोल दिया। तब बाशा ने “रामाह को बनाने का काम फौरन रोक दिया और काम वहीं बंद कर दिया।” (2 इति. 16:5) उस वक्‍त आसा ने सोचा होगा कि उसने एकदम सही फैसला किया।

4 लेकिन यहोवा को कैसा लगा? यहोवा इस बात से खुश नहीं था कि आसा ने उस पर भरोसा नहीं किया। उसने भविष्यवक्ता हनानी के ज़रिए आसा को फटकार लगायी। (2 इतिहास 16:7-9 पढ़िए।) हनानी ने आसा से कहा, “अब से तू लड़ाइयों में उलझा रहेगा।” आसा ने रामाह शहर पर कब्ज़ा तो कर लिया, लेकिन इसके बाद ज़िंदगी-भर वह और उसके लोग युद्धों में ही उलझे रहे।

5 पहले लेख में हमने सीखा था कि यहोवा आसा से बहुत खुश था। आसा परिपूर्ण नहीं था, फिर भी परमेश्वर ने देखा कि वह पूरे दिल से उसकी सेवा कर रहा है। (1 राजा 15:14) लेकिन आसा ने जब गलत फैसला किया, तो उसके अंजाम उसे भुगतने ही पड़े। आसा ने यहोवा पर भरोसा करने के बजाय इंसानों पर और खुद पर भरोसा क्यों किया? शायद उसने सोचा हो कि वह रणनीति से युद्ध जीत सकता है। या फिर हो सकता है कि उसने लोगों की गलत सलाह सुनी हो।

6. आसा की गलती से हम क्या सीख सकते हैं? एक उदाहरण दीजिए।

6 आसा ने जो गलती की, उससे हम क्या सबक सीख सकते हैं? हमें हर हाल में यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए, न कि अपनी बुद्धि पर। जब हमारे सामने कोई ऐसी समस्या आती है, जिसे सुलझाना हमें अपने बस के बाहर लगे, तब तो हम शायद यहोवा से मदद लें। लेकिन जब हम छोटी-छोटी मुश्किलों का सामना करते हैं, तब हम क्या करते हैं? क्या हम अपने तरीके से उसका सामना करने की कोशिश करते हैं? या पहले यह सोचते हैं कि इस बारे में बाइबल क्या कहती है? बाइबल में दी सलाह मानकर हम दिखाएँगे कि हम अपनी बुद्धि पर नहीं, बल्कि यहोवा पर भरोसा रखते हैं। जैसे, अगर आपके परिवारवाले किसी सभा या सम्मेलन में जाना आपके लिए मुश्किल कर देते हैं, तो आप क्या करेंगे? क्या आप प्रार्थना करके यहोवा से मार्गदर्शन लेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि उस हालात में क्या करना सही होगा? एक और हालात के बारे में सोचिए। मान लीजिए, काफी समय से आपके पास नौकरी नहीं है और अब कोई आपको नौकरी के लिए बुलाता है। क्या आप उसे बताएँगे कि आपको हर हफ्ते सभाओं में जाना होता है, जबकि इससे शायद वह आपको नौकरी पर न रखे? परेशानी चाहे जो भी हो, हमें यह सलाह याद रखनी चाहिए, “अपना सबकुछ यहोवा पर छोड़ दे, उस पर भरोसा रख, वह तेरी खातिर कदम उठाएगा।”—भज. 37:5.

बुरी संगति के क्या अंजाम हो सकते हैं?

7, 8. (क) यहोशापात ने क्या गलतियाँ कीं? (ख) इसके क्या अंजाम हुए? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

7 अब आइए आसा के बेटे यहोशापात पर ध्यान दें। उसमें कई अच्छे गुण थे, जिस वजह से यहोवा उससे खुश था। जब उसने यहोवा पर भरोसा रखा, तो उसने कई अच्छे काम किए। लेकिन उसने कुछ गलत फैसले भी किए। जैसे, उसने अपने बेटे की शादी इसराएल के दुष्ट राजा अहाब की बेटी से करवायी। बाद में जब अहाब सीरिया से युद्ध करने जा रहा था, तो यहोशापात ने उसका साथ दिया, जबकि भविष्यवक्ता मीकायाह ने उसे खबरदार किया था कि ऐसा करना सही नहीं होगा। युद्ध में उसकी जान पर बन आयी थी। (2 इति. 18:1-32) जब वह यरूशलेम लौटा, तो भविष्यवक्ता येहू ने उससे कहा, “क्या तुझे एक दुष्ट की मदद करनी चाहिए और उन लोगों से प्यार करना चाहिए जो यहोवा से नफरत करते हैं?”—2 इतिहास 19:1-3 पढ़िए।

8 क्या इस घटना से यहोशापात ने सबक सीखा? दुख की बात है कि उसने कुछ नहीं सीखा। हालाँकि वह अब भी यहोवा से प्यार करता था और उसे खुश करना चाहता था, मगर उसने फिर गलती की। उसने ऐसे आदमी से दोस्ती की, जो यहोवा की उपासना नहीं करना चाहता था। वह आदमी था, अहाब का बेटा राजा अहज्याह। यहोशापात और अहज्याह ने मिलकर कुछ जहाज़ बनाए। लेकिन वे इस्तेमाल होने से पहले ही टूटकर तहस-नहस हो गए।—2 इति. 20:35-37.

9. अगर हम गलत किस्म के लोगों से दोस्ती करें, तो क्या हो सकता है?

9 यहोशापात की गलतियों से हम क्या सबक सीख सकते हैं? उसने सही काम तो किए थे और “पूरे दिल से यहोवा की खोज” की थी। (2 इति. 22:9) लेकिन उसने उन लोगों से दोस्ती की, जो यहोवा से प्यार नहीं करते थे। इस वजह से उसे बड़ी-बड़ी मुसीबतें झेलनी पड़ीं। एक बार तो वह मरते-मरते बचा। बाइबल की यह सलाह कितनी सच है, “बुद्धिमानों के साथ रहनेवाला बुद्धिमान बनेगा, लेकिन मूर्खों के साथ मेल-जोल रखनेवाला बरबाद हो जाएगा।” (नीति. 13:20) हम लोगों को यहोवा के बारे में बताना चाहते हैं। लेकिन उन लोगों से करीबी दोस्ती रखना खतरे से खाली नहीं होगा, जो उसकी सेवा नहीं करते।

10. (क) शादी करने के मामले में हम यहोशापात से क्या सबक सीख सकते हैं? (ख) हमें क्या याद रखना चाहिए?

10 जो शादी करना चाहते हैं, क्या वे यहोशापात से कोई सबक सीख सकते हैं? उन्हें शायद लगे कि उन्हें यहोवा के संगठन में ऐसा व्यक्‍ति नहीं मिल पाएगा, जिससे वे शादी कर सकें। या हो सकता है, उनके रिश्तेदार बार-बार उनसे कहते हों कि अब तो तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए, नहीं तो तुम्हारी उम्र निकल जाएगी। ऐसे में शायद वे किसी ऐसे व्यक्‍ति को चाहने लगें, जो यहोवा से प्यार नहीं करता। कुछ लोगों को शायद एक बहन की तरह लगे, जिसने कहा कि हम सबमें प्यार करने और प्यार पाने की चाहत होती है। लेकिन जब एक मसीही को सही व्यक्‍ति न मिले, तो उसे क्या करना चाहिए? यहोशापात के साथ जो हुआ, उस पर मनन करने से उसे काफी मदद मिल सकती है। वैसे तो यहोशापात अकसर यहोवा से मार्गदर्शन लेता था। (2 इति. 18:4-6) लेकिन जब उसने अहाब से दोस्ती की, जो यहोवा से प्यार नहीं करता था, तो उसने यहोवा की चेतावनी ठुकरा दी। उसे याद रखना चाहिए था कि “यहोवा की आँखें सारी धरती पर इसलिए फिरती रहती हैं कि वह उन लोगों की खातिर अपनी ताकत दिखाए जिनका दिल उस पर पूरी तरह लगा रहता है।” (2 इति. 16:9) हमें भी याद रखना चाहिए कि यहोवा हमारी मदद करना चाहता है। वह हमारे हालात समझता है और हमसे प्यार करता है। अगर आपको एक जीवन-साथी की तलाश है, तो यहोवा यह बात जानता है और वह आपकी मदद करेगा। क्या आपको इस बात का भरोसा है? यकीन रखिए कि एक-न-एक दिन वह आपकी ज़रूर मदद करेगा!

ऐसे व्यक्‍ति को चाहने न लगें, जो यहोवा की उपासना नहीं करता (पैराग्राफ 10)

आपका मन घमंड से फूल न जाए

11, 12. (क) हिजकियाह ने ऐसा क्या किया जिससे पता चला कि उसके दिल में क्या है? (ख) किस वजह से यहोवा ने हिजकियाह को माफ कर दिया?

11 हिजकियाह से भी हम सबक सीख सकते हैं। एक बार यहोवा ने घटनाओं का रुख इस तरह मोड़ा जिससे यह पता चला कि हिजकियाह के दिल में क्या है। (2 इतिहास 32:31 पढ़िए।) जब हिजकियाह बहुत बीमार हो गया था, तो परमेश्वर ने उससे कहा कि वह ठीक हो जाएगा और उसे यकीन दिलाने के लिए एक निशानी दी। यहोवा ने सीढ़ियों पर की छाया दस कदम पीछे कर दी। ऐसा लगता है कि कुछ समय बाद बैबिलोन के हाकिम उस निशानी के बारे में और जानना चाहते थे, इसलिए उन्होंने हिजकियाह के पास अपने आदमी भेजे। (2 राजा 20:8-13; 2 इति. 32:24) यहोवा ने हिजकियाह को यह नहीं बताया कि उसे उनके साथ कैसे पेश आना चाहिए। बाइबल में लिखा है कि यहोवा ने “उसे छोड़ दिया” ताकि यह जाने कि उसके दिल में क्या है। हिजकियाह ने बैबिलोन से आए आदमियों को अपना सारा खज़ाना दिखा दिया। इससे पता चल गया कि उसके दिल में क्या है।

12 दुख की बात है कि हिजकियाह घमंडी हो गया था। उसके साथ “जो भलाई की गयी थी, उसकी उसने कदर नहीं की।” बाइबल यह नहीं बताती कि उसका रवैया क्यों बदल गया। शायद इसलिए कि उसने अश्शूरियों पर जीत पायी थी या इसलिए कि यहोवा ने उसे ठीक कर दिया था या फिर शायद इसलिए कि वह बहुत मालामाल और मशहूर हो गया था। हालाँकि हिजकियाह ने पूरे दिल से यहोवा की सेवा की थी, लेकिन एक वक्‍त पर वह घमंडी हो गया और यहोवा उससे खुश नहीं था। बाद में ‘हिजकियाह ने खुद को नम्र किया’ और यहोवा ने उसे माफ कर दिया।—2 इति. 32:25-27; भज. 138:6.

13, 14. (क) कौन-से हालात में यह पता चल सकता है कि हमारे दिल में क्या है? (ख) जब लोग हमारी तारीफ करते हैं, तो हमारा रवैया कैसा होना चाहिए?

13 हिजकियाह का ब्यौरा पढ़ने और उस पर मनन करने से हम क्या सबक सीख सकते हैं? याद कीजिए कि यहोवा ने जब हिजकियाह को अश्शूरियों पर जीत दिलायी और उसकी बीमारी ठीक कर दी, उसके फौरन बाद ही उसने अपने कामों से दिखाया कि वह घमंडी हो गया है। जब हमारे साथ कुछ अच्छा होता है या कोई हमारी तारीफ करता है, तब हम क्या करते हैं? हमारे रवैए से पता चलेगा कि हमारे दिल में क्या है। मान लीजिए, एक भाई ने शायद काफी मेहनत करके भाषण तैयार किया हो और बहुत-से लोगों के सामने उसे पेश किया हो। शायद कई लोग उसकी तारीफ करें। तारीफ सुनकर वह क्या करेगा?

14 ऐसे में यीशु की यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए, “जब तुम वे सारे काम कर लो जो तुम्हें दिए गए हैं, तो कहना, ‘हम निकम्मे दास हैं। हमने बस वही किया है, जो हमें करना चाहिए था।’” (लूका 17:10) याद कीजिए कि जब हिजकियाह घमंडी हो गया था, तो उसने इस बात की कदर नहीं की कि यहोवा ने उस पर कितनी भलाई की है। तो फिर जब लोग हमारे भाषण की तारीफ करते हैं, तब हम कैसे नम्र बने रह सकते हैं? हम गहराई से यह सोच सकते हैं कि यहोवा ने किस तरह हमारी मदद की। साथ ही, हम कदरदानी-भरे दिल से लोगों को बता सकते हैं कि यहोवा की मदद से ही हम ऐसा कर पाए। आखिर यहोवा ने ही तो हमें बाइबल और पवित्र शक्‍ति दी है, जिसकी बदौलत हम भाषण दे पाते हैं।

यहोवा से मार्गदर्शन लेकर फैसले कीजिए

15, 16. योशियाह ने ऐसा क्या किया, जिस वजह से उसकी मौत हो गयी?

15 अब राजा योशियाह से हम क्या सबक सीख सकते हैं? योशियाह अच्छा राजा था, लेकिन उसने भी एक गलती की, जिस वजह से उसकी मौत हो गयी। (2 इतिहास 35:20-22 पढ़िए।) योशियाह ने क्या किया? उसने बेवजह मिस्र के राजा निको से युद्ध किया। निको ने तो योशियाह से कहा था कि वह उससे युद्ध नहीं करना चाहता। बाइबल में लिखा है कि निको की बात “परमेश्वर की तरफ से थी।” इसके बावजूद योशियाह ने उससे युद्ध किया और वह मारा गया। आखिर उसने निको से युद्ध क्यों किया? बाइबल नहीं बताती।

16 योशियाह को पता लगाना चाहिए था कि निको ने जो कहा है, क्या वह सच में यहोवा की तरफ से है। वह यह कैसे कर सकता था? वह यहोवा के भविष्यवक्ता यिर्मयाह से पूछ सकता था। (2 इति. 35:23, 25) यही नहीं, योशियाह को सबूतों पर भी ध्यान देना चाहिए था। निको असल में एक दूसरे राष्ट्र कर्कमीश पर हमला करने जा रहा था, न कि यरूशलेम पर। उसने यहोवा या उसके लोगों का कोई अपमान नहीं किया था। युद्ध करने से पहले योशियाह ने इन बातों पर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया। इससे हम क्या सीखते हैं? जब कोई समस्या आए और हमें फैसला करना हो, तो हमें पहले यह सोचना चाहिए कि उस बारे में यहोवा की क्या मरज़ी है।

17. मुश्किल हालात में हम योशियाह की तरह गलती करने से कैसे बच सकते हैं?

17 जब हमें कोई फैसला करना हो, तो पहले हमें सोचना चाहिए कि उस मामले में बाइबल में कौन-से सिद्धांत दिए हैं और उनके मुताबिक क्या करना सही होगा। कभी-कभी शायद हमें अपनी किताबों-पत्रिकाओं में और खोजबीन करनी पड़े या किसी प्राचीन से सलाह लेनी पड़े। प्राचीन हमें बाइबल के कुछ और सिद्धांत बता सकते हैं। ज़रा एक ऐसी बहन के बारे में सोचिए, जिसका पति साक्षी नहीं है। एक दिन वह बहन प्रचार के लिए जानेवाली है। (प्रेषि. 4:20) लेकिन उस दिन उसका पति नहीं चाहता कि वह प्रचार में जाए। वह उससे कहता है कि उन्होंने काफी दिनों से एक-साथ वक्‍त नहीं बिताया है, इसलिए वह उसे कहीं घुमाने ले जाना चाहता है। अब वह बहन अपने हालात से जुड़ी बाइबल की कुछ आयतों पर सोचती है, ताकि वह सही फैसला ले सके। वह जानती है कि उसे परमेश्वर की आज्ञा माननी चाहिए और यीशु की आज्ञा के मुताबिक उसे चेला बनाने का काम करना चाहिए। (मत्ती 28:19, 20; प्रेषि. 5:29) लेकिन वह यह भी जानती है कि एक पत्नी को अपने पति के अधीन रहना चाहिए और परमेश्वर के सेवकों को दूसरों का लिहाज़ करना चाहिए। (इफि. 5:22-24; फिलि. 4:5) इन सिद्धांतों को ध्यान में रखकर वह सोच सकती है, ‘क्या मेरे पति मुझे प्रचार करने से रोक रहे हैं या वे बस आज मेरे साथ थोड़ा वक्‍त बिताना चाहते हैं?’ यहोवा के सेवक होने के नाते हमें ऐसे फैसले लेने चाहिए, जिनसे यहोवा खुश हो और यह ज़ाहिर हो कि हम सूझ-बूझ से काम लेते हैं।

पूरे दिल से यहोवा की सेवा कीजिए और खुश रहिए

18. यहूदा के चार राजाओं के बारे में गहराई से सोचने से हम कौन-से सबक सीख सकते हैं?

18 कभी-कभी शायद हम भी ऐसी गलती करें, जो यहूदा के इन चार राजाओं ने की थीं। हम शायद खुद पर भरोसा करने लगें या गलत किस्म के लोगों से दोस्ती करें या घमंडी हो जाएँ या फिर परमेश्वर की मरज़ी जाने बगैर कोई फैसला करें। ऐसी गलती होने के बावजूद हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हम यहोवा को कभी खुश नहीं कर पाएँगे। वह हममें अच्छाइयाँ देखता है, जैसे उसने इन चार राजाओं में देखी थीं। यहोवा यह भी देखता है कि हम उससे कितना प्यार करते हैं और किस तरह पूरे दिल से उसकी सेवा करना चाहते हैं। तभी तो उसने बाइबल में ऐसे उदाहरण लिखवाए हैं, जिनसे सीखकर हम बड़ी-बड़ी गलतियाँ करने से बच सकते हैं। तो आइए हम इन उदाहरणों पर गहराई से सोचें और यहोवा का शुक्रिया अदा करें!