इस जानकारी को छोड़ दें

नौजवानों के सवाल

क्या मैं एक परफेक्शनिस्ट हूँ?

क्या मैं एक परफेक्शनिस्ट हूँ?

 अगर

  •   आप चाहते हैं कि हर टेस्ट में आपके 100% नंबर आएँ

  •   आप कुछ नया करने से घबराते हैं क्योंकि आपको डर है कि कहीं आप कामयाब नहीं हुए तो

  •   सामनेवाला आपकी गलती बताता है और आपको लगता है कि आपको नीचा दिखाया जा रहा है

 . . . , तो इसका मतलब है कि आप परफेक्शनिस्ट हैं यानी आप यह उम्मीद करते हैं कि आपसे और दूसरों से कभी गलती नहीं होगी। क्या इससे कोई फर्क पड़ता है?

 क्या इस तरह की सोच सही है?

 किसी काम को अच्छे-से-अच्छा करने की कोशिश करने में कोई बुराई नहीं। लेकिन जैसा कि अँग्रेज़ी की एक किताब ज़्यादा अच्छा होना भी क्यों बुरा है? कहती है, “किसी काम को अच्छी तरह करने में और जो काम असंभव है उसके पीछे भागने में, ज़मीन-आसमान का फर्क है।” किताब आगे कहती है, “यह उम्मीद करना कि आपसे या दूसरों से कभी कोई गलती नहीं होगी एक बहुत बड़ी भूल है, क्योंकि हम सबके अंदर कमियाँ हैं!”

 बाइबल में भी यही बताया गया है, “धरती पर ऐसा कोई नेक इंसान नहीं, जो हमेशा  अच्छे काम करता है।” (सभोपदेशक 7:20) आपमें कमियाँ हैं इसलिए यह उम्मीद मत कीजिए कि आप हर बार नंबर 1 होंगे।

 क्या यह बात कबूल करना आपके लिए मुश्‍किल है? अगर हाँ, तो ध्यान दीजिए कि इस तरह की सोच कैसे चार तरीकों से आप पर बुरा असर डाल सकती है।

  1.   आप अपने बारे में कैसा नज़रिया रखते हैं। इस तरह की सोच रखनेवाले अपने लिए बहुत ऊँचे स्तर ठहराते हैं जिन्हें हासिल करना नामुमकिन होता है। इसलिए वे अकसर निराश हो जाते हैं। एलीशा नाम कि लड़की कहती है, “सच तो यह है कि हम हर काम में माहिर नहीं हो सकते। और अगर हम यह सोचने लगें कि हमसे कोई काम ठीक से नहीं होता, तो हम खुद की नज़रों में गिर जाएँगे और हमारा आत्म-विश्‍वास खत्म हो जाएगा। इससे हम निराशा में डूब सकते हैं।”

  2.   अच्छी सलाह मिलने पर आप कैसा नज़रिया रखते हैं। इस तरह के लोगों को जब कोई अच्छी सलाह दी जाती है, तो उन्हें लगता है कि उनकी बेइज़्ज़ती की जा रही है। जेरेमी नाम का नौजवान कहता है, “जब कोई मुझे सुधारता है तो मुझे बहुत बुरा लगता है।” लेकिन वह यह भी कहता है, “याद रखिए कि आप सबकुछ नहीं कर सकते क्योंकि आपकी भी कुछ हदें हैं और आपको भी दूसरों की मदद लेनी पड़ सकती है।”

  3.   आप दूसरों के बारे में कैसा नज़रिया रखते हैं। जो दूसरों से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद करते हैं, वे अकसर उनमें नुक्स निकालते हैं। अठारह साल की ऐना कहती है, “जब आपको लगता है कि आपसे कभी कोई गलती नहीं होती, तो आप दूसरों को भी उसी तराज़ू में तौलते हैं। और जब लोग आपकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते तो आपको निराशा हो जाते हैं।”

  4.   दूसरे आपके बारे में कैसा नज़रिया रखते हैं। अगर आप दूसरों से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद करेंगे तो लोग आपसे दूर भागेंगे! बेथ नाम की लड़की कहती है, “आप उन लोगों को कभी खुश नहीं कर सकते जो अपने और दूसरों के लिए ऐसे स्तर ठहराते हैं जिन तक पहुँचना नामुमकिन है। भला कौन उन लोगों के आस-पास भी फटकना चाहेगा!”

 हम यह सोच कैसे सुधार सकते हैं?

 बाइबल बताती है, “सब लोग जान जाएँ कि तुम लिहाज़ करनेवाले इंसान हो।” (फिलिप्पियों 4:5) लिहाज़ करनेवाले लोग खुद से और दूसरों से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करते।

 “दुनिया में पहले ही इतना तनाव है, तो फिर खुद से बहुत-ज़्यादा की उम्मीद करके अपनी परेशानी क्यों बढ़ाना? यह तो मानो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना हुआ!”—नाएला।

 बाइबल में लिखा है, ‘मर्यादा में रहकर अपने परमेश्‍वर के साथ चल।’ (मीका 6:8) मर्यादा में रहनेवाले लोग अपनी सीमाएँ पहचानते हैं। वे उतना ही करते हैं, जितना उनसे हो सकता है। वे एक ही काम के पीछे हद-से-ज़्यादा समय नहीं बरबाद करते।

 “मैं उतनी ही ज़िम्मेदारी लेती हूँ जितनी मैं उठा सकती हूँ, तब मुझे इस बात की खुशी मिलती है कि मुझे जो काम दिया गया था मैंने उसे अच्छे से किया।”—हेली।

 लेकिन यह सोचकर हमें हाथ-पर-हाथ धरकर नहीं बैठना चाहिए कि गलतियाँ तो होंगी ही, बल्कि जैसा सभोपदेशक 9:10 में बताया है, “तू जो भी करे उसे जी-जान से कर,” तो हमें मेहनत करनी चाहिए। साथ ही हमें यह याद रखना चाहिए कि हम खुद का लिहाज़ करें यानी हम अपने-आप से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद न करें और अपनी मर्यादा में रहें।

 “मैं अपने काम में जी-जान लगा देता हूँ, उसे अच्छी तरह करता हूँ। मुझे पता है कि गलतियाँ होंगी, लेकिन मुझे इस बात की खुशी होती है कि मैंने काम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।”—जोशुआ।